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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 34: नन्द महाराज की रक्षा तथा शंखचूड़ का वध  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  10.34.7 
तस्य चाक्रन्दितं श्रुत्वा गोपाला: सहसोत्थिता: ।
ग्रस्तं च द‍ृष्ट्वा विभ्रान्ता: सर्पं विव्यधुरुल्मुकै: ॥ ७ ॥
 
शब्दार्थ
तस्य—उसकी; —तथा; आक्रन्दितम्—चिल्लाहट; श्रुत्वा—सुनकर; गोपाला:—ग्वाले; सहसा—एकाएक; उत्थिता:— उठकर; ग्रस्तम्—पकड़ा हुआ; —तथा; दृष्ट्वा—देखकर; विभ्रान्ता:—विचलित; सर्पम्—साँप को; विव्यधु:—पीटा; उल्मुकै:—जलती मशालों, या लुकाठों से ।.
 
अनुवाद
 
 जब ग्वालों ने नन्द की चीखें सुनीं तो वे तुरन्त उठ गये और उन्होंने देखा कि नन्द को तो सर्प निगले जा रहा है। अत्यन्त विचलित होकर उन्होंने जलती मशालों से उस सर्प को पीटा।
 
 
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