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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 37: केशी तथा व्योम असुरों का वध  »  श्लोक 15-20
 
 
श्लोक  10.37.15-20 
चाणूरं मुष्टिकं चैव मल्लानन्यांश्च हस्तिनम् ।
कंसं च निहतं द्रक्ष्ये परश्वोऽहनि ते विभो ॥ १५ ॥
तस्यानु शङ्खयवनमुराणां नरकस्य च ।
पारिजातापहरणमिन्द्रस्य च पराजयम् ॥ १६ ॥
उद्वाहं वीरकन्यानां वीर्यशुल्कादिलक्षणम् ।
नृगस्य मोक्षणं शापाद्‌द्वारकायां जगत्पते ॥ १७ ॥
स्यमन्तकस्य च मणेरादानं सह भार्यया ।
मृतपुत्रप्रदानं च ब्राह्मणस्य स्वधामत: ॥ १८ ॥
पौण्ड्रकस्य वधं पश्चात् काशिपुर्याश्च दीपनम् ।
दन्तवक्रस्य निधनं चैद्यस्य च महाक्रतौ ॥ १९ ॥
यानि चान्यानि वीर्याणि द्वारकामावसन्भवान् ।
कर्ता द्रक्ष्याम्यहं तानि गेयानि कविभिर्भुवि ॥ २० ॥
 
शब्दार्थ
चाणूरम्—चाणूर को; मुष्टिकम्—मुष्टिक को; —तथा; एव—भी; मल्लान्—कुश्ती लडऩे वाले, पहलवानों को; अन्यान्— अन्य; —तथा; हस्तिनम्—हाथी (कुवलयापीड) को; कंसम्—कंस को; —तथा; निहतम्—मारा गया; द्रक्ष्ये—देखूँगा; पर-श्व:—परसों; अहनि—उस दिन; ते—तुम्हारे द्वारा; विभो—हे सर्वशक्तिमान; तस्य अनु—उसके बाद; शङ्ख-यवन- मुराणाम्—शंख (पञ्चजन), कालयवन तथा मुर नामक असुरों का; नरकस्य—नरकासुर का; —भी; पारिजात—स्वर्ग के पारिजात पुष्प का; अपहरणम्—चुराया जाना; इन्द्रस्य—इन्द्र की; —तथा; पराजयम्—हार; उद्वाहम्—विवाह; वीर—वीर राजाओं का; कन्यानाम्—कन्याओं के; वीर्य—आपके पराक्रम से; शुल्क—दहेज; आदि—इत्यादि; लक्षणम्—लक्षणों से युक्त; नृगस्य—राजा नृग का; मोक्षणम्—मोक्ष; शापात्—अपने शाप से; द्वारकायाम्—द्वारका नगरी में; जगत्-पते—हे ब्रह्माण्ड के स्वामी; स्यमन्तकस्य—स्यमन्तक नामक; —तथा; मणे:—मणि का; आदानम्—ग्रहण किया जाना; सह—के साथ; भार्यया—पत्नी (जाम्बवती) के साथ; मृत—मरे हुए; पुत्र—बेटे का; प्रदानम्—लाकर देना; —तथा; ब्राह्मणस्य— ब्राह्मण के; स्व-धामत:—अपने धाम (मृत्युधाम) से; पौण्ड्रकस्य—पौण्ड्रक का; वधम्—मारा जाना; पश्चात्—उसके बाद; काशि-पुर्या:—काशी नगरी (बनारस) के; —तथा; दीपनम्—दहन; दन्तवक्रस्य—दन्तवक्र का; निधनम्—मरण; चैद्यस्य—चैद्य (शिशुपाल) का; —तथा; महा-क्रतौ—महायज्ञ (महाराज युधिष्ठिर का राजसूय यज्ञ) के समय; यानि—जो; —तथा; अन्यानि—अन्य; वीर्याणि—बड़े बड़े कौशल; द्वारकाम्—द्वारका में; आवसन्—रहते हुए; भवान्—आप; कर्ता— सम्पन्न करने जा रहे हैं; द्रक्ष्यामि—देखूँगा; अहम्—मैं; तानि—उनको; गेयानि—गाये जाने के लिए; कविभि:—कवियों द्वारा; भुवि—इस पृथ्वी पर ।.
 
अनुवाद
 
 हे सर्वशक्तिमान विभो, दो ही दिनों में मैं आपके हाथों चाणूर, मुष्टिक तथा अन्य पहलवानों के साथ साथ कुवलयापीड तथा राजा कंस की भी मृत्यु होते देखूँगा। इसके बाद मैं कालयवन, मुर, नरक तथा शंख असुर को आपके द्वारा मारा जाते देखूँगा। मैं आपको पारिजात पुष्प चुराते और इन्द्र को पराजित करते देखूँगा। तत्पश्चात् अपने पराक्रम से मूल्य चुकाते हुए वीर राजाओं की अनेक कन्याओं के साथ आपको विवाह करते देखूँगा। तब हे ब्रह्माण्डपति, आप द्वारका में राजा नृग का शाप से उद्धार करेंगे और एक अन्य पत्नी के साथ साथ आप अपने लिए स्यमन्तक मणि भी लेंगे। आप ब्राह्मण के मृत पुत्र को अपने दास यमराज के धाम से वापस लायेंगे और उसके बाद आप पौण्ड्रक का वध करेंगे तथा काशी नगरी को जला देंगे और राजसूय यज्ञ के समय दन्तवक्त्र तथा चेदिराज का संहार करेंगे। मैं इन सब वीरतापूर्ण लीलाओं को तो देखूँगा ही, साथ ही द्वारका में अपने वास-काल में आप जो अन्य अनेक लीलाएँ करेंगे उन्हें भी देखूँगा। ये सारी लीलाएँ दिव्य कवियों के गीतों में इस धरा पर गाई जाती हैं।
 
 
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