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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 37: केशी तथा व्योम असुरों का वध  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  10.37.24 
श्रीशुक उवाच
एवं यदुपतिं कृष्णं भागवतप्रवरो मुनि: ।
प्रणिपत्याभ्यनुज्ञातो ययौ तद्दर्शनोत्सव: ॥ २४ ॥
 
शब्दार्थ
श्री-शुक: उवाच—श्रीशुकदेव ने कहा; एवम्—इस प्रकार; यदु-पतिम्—यदुओं में प्रमुख; कृष्णम्—कृष्ण को; भागवत— भक्तों के; प्रवर:—परम विख्यात; मुनि:—नारदमुनि ने; प्रणिपत्य—सादर नमस्कार करके; अभ्यनुज्ञात:—विदा किये गये; ययौ—चला गया; तत्—उन कृष्ण के; दर्शन—दर्शन करके; उत्सव:—परम हर्ष का अनुभव करते हुए ।.
 
अनुवाद
 
 शुकदेव गोस्वामी ने कहा : इस प्रकार यदुवंश के प्रधान भगवान् कृष्ण को सम्बोधित करने के बाद नारद ने झुककर सादर प्रणाम किया। तत्पश्चात् उस मुनियों में महान् तथा भक्तों में विख्यात नारद ने भगवान् से विदा ली और उनका साक्षात् दर्शन करने से उत्पन्न परम हर्ष का अनुभव करते हुए चले गये।
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥