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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 37: केशी तथा व्योम असुरों का वध  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  10.37.26 
एकदा ते पशून्पालाश्चारयन्तोऽद्रिसानुषु ।
चक्रुर्निलायनक्रीडाश्चोरपालापदेशत: ॥ २६ ॥
 
शब्दार्थ
एकदा—एक बार; ते—उन; पशून्—पशुओं को; पाला:—ग्वालबालों ने; चारयन्त:—चराते हुए; अद्रि—पर्वत के; सानुषु— ढलानों पर; चक्रु:—खेला; निलायन—लुकाछिपी; क्रीडा:—खेल; चोर—चोरों के; पाल—तथा रक्षकों के; अपदेशत:— अभिनय करते हुए ।.
 
अनुवाद
 
 एक दिन पर्वत की ढलानों पर अपने पशु चराते हुए ग्वालबालों ने आपस में प्रतिद्वन्द्वी चोरों तथा मवेशि-पालकों (गड़ेरियों) का अभिनय करते हुए लुकाछिपी का खेल खेला।
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥