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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 37: केशी तथा व्योम असुरों का वध  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  10.37.27 
तत्रासन् कतिचिच्चोरा: पालाश्च कतिचिन्नृप ।
मेषायिताश्च तत्रैके विजह्रुरकुतोभया: ॥ २७ ॥
 
शब्दार्थ
तत्र—उसमें; आसन्—थे; कतिचित्—कुछ; चोरा:—चोर; पाला:—चराने वाले, पालक; —तथा; कतिचित्—कुछ; नृप— हे राजा (परीक्षित); मेषायिता:—भेड़ का वेश बनाकर; —तथा; तत्र—वहाँ; एके—कुछ ने; विजह्रु:—खेल खेला; अकुत:-भया:—बिना किसी भय के ।.
 
अनुवाद
 
 हे राजन्, उस खेल में कुछ ग्वाले चोर बने, कुछ गडरिये तथा अन्य भेड़ बने। वे किसी संकट के भय के बिना सुखचैन से अपना खेल खेल रहे थे।
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥