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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 37: केशी तथा व्योम असुरों का वध  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  10.37.3 
स तं निशाम्याभिमुखो मुखेन खं
पिबन्निवाभ्यद्रवदत्यमर्षण: ।
जघान पद्‌भ्यामरविन्दलोचनं
दुरासदश्चण्डजवो दुरत्यय: ॥ ३ ॥
 
शब्दार्थ
स:—वह, केशी; तम्—उन्हें, कृष्ण को; निशाम्य—देखकर; अभिमुख:—अपने सामने; मुखेन—अपने मुख से; खम्— आकाश को; पिबन्—पीता हुआ; इव—मानो; अभ्यद्रवत्—आगे दौड़ा; अति-अमर्षण:—अत्यन्त क्रुद्ध; जघान—आक्रमण कर दिया; पद्भ्याम्—अपने दो पाँवों से; अरविन्द-लोचनम्—कमल-नेत्र वाले प्रभु को; दुरासद:—पार पाना कठिन; चण्ड— प्रचण्ड; जव:—वेग वाला; दुरत्यय:—अजेय ।.
 
अनुवाद
 
 भगवान् को अपने सामने खड़ा देखकर केशी अत्यन्त क्रुद्ध होकर अपना मुह बाये उनकी ओर दौड़ा मानो वह आकाश को निगल जायेगा। प्रचण्ड वेग से दौड़ते हुए उस अजेय तथा दुर्धर्ष घोड़ा-असुर ने अपने अगले दो पाँवों से कमलनयन भगवान् पर प्रहार करने का प्रयत्न किया।
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥