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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 37: केशी तथा व्योम असुरों का वध  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  10.37.30 
तस्य तत् कर्म विज्ञाय कृष्ण: शरणद: सताम् ।
गोपान् नयन्तं जग्राह वृकं हरिरिवौजसा ॥ ३० ॥
 
शब्दार्थ
तस्य—उसका, व्योमासुर का; तत्—वह; कर्म—काम; विज्ञाय—पूरी तरह जानकर; कृष्ण:—कृष्ण ने; शरण—शरण के; द:—दाता; सताम्—साधु भक्तों को; गोपान्—ग्वालबालों को; नयन्तम्—ले जाने वाले को; जग्राह—पकड़ लिया; वृकम्— भेडिय़े को; हरि:—सिंह; इव—सदृश; ओजसा—बलपूर्वक ।.
 
अनुवाद
 
 समस्त सन्त भक्तों को शरण देने वाले भगवान् कृष्ण अच्छी तरह जान गये कि व्योमासुर कर क्या रहा है। जिस तरह कोई सिंह भेडिय़े को दबोच लेता है उसी तरह कृष्ण ने उस असुर को जब वह अन्य ग्वालबालों को लिये जा रहा था बलपूर्वक धर दबोचा।
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥