भगवान् अच्युत ने व्योमासुर को अपनी बाँहों के बीच में जकड़ कर पृथ्वी पर पदक दिया। तब स्वर्ग से देवताओं के देखते देखते कृष्ण ने उसे उसी तरह मार डाला जिस तरह कोई बलि पशु का वध करता है।
तात्पर्य
आचार्यगण बतलाते हैं कि बलि-पशु को गला घोंटकर मारा जाता था।
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