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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 47: भ्रमर गीत  »  श्लोक 39
 
 
श्लोक  10.47.39 
गोप्य ऊचु:
दिष्‍ट्याहितो हत: कंसो यदूनां सानुगोऽघकृत् ।
दिष्‍ट्याप्तैर्लब्धसर्वार्थै: कुशल्यास्तेऽच्युतोऽधुना ॥ ३९ ॥
 
शब्दार्थ
गोप्य: ऊचु:—गोपियों ने कहा; दिष्ट्या—सौभाग्य से; अहित:—शत्रु; हत:—मारा जा चुका है; कंस:—राजा कंस; यदूनाम्— यदुओं का; स-अनुग:—अपने अनुयायियों सहित; अघ—कष्ट का; कृत्—कारण; दिष्ट्या—सौभाग्य से; आप्तै:—अपने शुभचिन्तकों सहित; लब्ध—प्राप्त हुए; सर्व—समस्त; अर्थै:—अपनी इच्छाओं से; कुशली—सुखपूर्वक; आस्ते—रह रहा है; अच्युत:—कृष्ण; अधुना—इस समय ।.
 
अनुवाद
 
 गोपियों ने कहा : यह अच्छी बात है कि यदुओं का शत्रु एवं उन्हें सताने वाला कंस अब अपने अनुयायियों सहित मारा जा चुका है। और यह भी अच्छी बात है कि भगवान् अच्युत अपने शुभैषी मित्रों तथा सम्बन्धियों के साथ सुखपूर्वक रह रहे हैं जिनकी हर इच्छा अब पूरी हो रही है।
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥