अक्रूर ने कहा : हे प्रिय विचित्रवीर्य के पुत्र, हे कुरुओं की कीर्ति को बढ़ाने वाले, आपने अपने भाई पाण्डु के दिवंगत होने के बाद राज-सिंहासन ग्रहण किया है।
तात्पर्य
अक्रूर व्यंग्य-वचन बोल रहे थे क्योंकि वास्तव में उस सिंहासन पर पाण्डु के युवा पुत्रों को आसीन होना चाहिए था। चूँकि पाण्डु की मृत्यु के समय अभी उनके पुत्र आयु में छोटे होने के कारण शासन करने योग्य न थे, अत: उन्हें धृतराष्ट्र के संरक्षण में रखा गया था। किन्तु तब से काफी समय व्यतीत हो चुका था अत: उनके न्यायसंगत अधिकार को अब मान लिया जाना चाहिए था।
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