भगवद्गीता (४.७) में भगवान् कहते हैं— यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमर्धमस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
“जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म का प्राधान्य होता है तब-तब हे भरतवंशी! मैं स्वयं अवतरित होता हूँ।” ब्रह्मा के एक दिन में, जब भी कृष्ण अवतरित होते हैं, तो वे वृन्दावन में नन्द महाराज के घर में ही आते हैं। कृष्ण सारी सृष्टि के स्वामी हैं (सर्वलोकमहेश्वरम् )। अत: न केवल नंद महाराज के व्रज के पड़ोस में अपितु सारे ब्रह्माण्ड में तथा अन्य सभी ब्रह्माण्डों में भगवान् के शुभ आगमन पर वाद्ययंत्र बज उठे।