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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 6: यदुवंश का प्रभास गमन  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  11.6.32 
श्रीशुक उवाच
इत्युक्तो लोकनाथेन स्वयम्भू: प्रणिपत्य तम् ।
सह देवगणैर्देव: स्वधाम समपद्यत ॥ ३२ ॥
 
शब्दार्थ
श्री-शुक: उवाच—शुकदेव गोस्वामी ने कहा; इति—इस प्रकार; उक्त:—कहे जाने पर; लोक-नाथेन—ब्रह्माण्ड के स्वामी श्रीकृष्ण द्वारा; स्वयम्-भू:—स्वत: जन्मे ब्रह्मा ने; प्रणिपत्य—गिर कर नमस्कार करते हुए; तम्—उनको; सह—सहित; देव- गणै:—सारे देवताओं; देव:—ब्रह्माजी; स्व-धाम—अपने निजी धाम; समपद्यत—लौट गये ।.
 
अनुवाद
 
 श्री शुकदेव गोस्वामी ने कहा : ब्रह्माण्ड के स्वामी द्वारा ऐसा कहे जाने पर स्वयम्भू ब्रह्मा उनके चरणकमलों पर गिर पड़े और उन्हें नमस्कार किया। तब सारे देवताओं से घिरे हुए ब्रह्माजी अपने निजी धाम लौट गये।
 
 
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