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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 7: भगवान् कृष्ण द्वारा उद्धव को उपदेश  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  11.7.5 
न वस्तव्यं त्वयैवेह मया त्यक्ते महीतले ।
जनोऽभद्ररुचिर्भद्र भविष्यति कलौ युगे ॥ ५ ॥
 
शब्दार्थ
—नहीं; वस्तव्यम्—रहे आना चाहिए; त्वया—तुम्हारे द्वारा; एव—निश्चय ही; इह—इस जगत में; मया—मेरे द्वारा; त्यक्ते— त्यागे हुए; महीतले—पृथ्वी पर; जन:—लोग; अभद्र—पापी, अशुभ वस्तुएँ; रुचि:—लिप्त; भद्र—हे पापरहित एवं मंगलमय; भविष्यति—हो जायेगा; कलौ—इस कलि; युगे—युग में ।.
 
अनुवाद
 
 हे उद्धव, जब मैं इस जगत को छोड़ चुकूँ, तो तुम्हें इस पृथ्वी पर नहीं रहना चाहिए। हे प्रिय भक्त, तुम निष्पाप हो, किन्तु कलियुग में लोग सभी प्रकार के पापपूर्ण कार्यों में लिप्त रहेंगे, अतएव तुम्हें यहाँ नहीं रुकना चाहिए।
 
तात्पर्य
 इस कलिकाल में मनुष्य इस बात से नितान्त अनभिज्ञ रहते हैं कि भगवान् अपनी दिव्य लीलाएँ उसी रूप में प्रदर्शित करने के लिए पृथ्वी पर आते हैं, जिस रूप में ये लीलाएँ स्वर्ग में सम्पन्न की जाती हैं। भगवान् की सत्ता की परवाह न करते हुए कलियुग के पतित जन कटु कलह में फँस कर एक-दूसरे को सताते हैं। चूँकि कलियुग में लोग दूषित पापपूर्ण कार्यों में लिप्त रहते हैं, इसलिए वे सदैव क्रुद्ध, कामी तथा उद्विग्न रहते हैं। कलियुग में भगवद्भक्तों को, जो भगवान् की प्रेमाभक्ति में लगे हुए हैं, चाहिए कि इस पृथ्वी पर जीवन बिताने के लिए कभी आकृष्ट न हों, क्योंकि इसकी जनता अज्ञान के अंधकार में डूबी हुई है और भगवान् से किसी भी तरह का सम्बन्ध नहीं रखती। इसीलिए भगवान् कृष्ण ने उद्धव को सलाह दी कि वे कलियुग में इस पृथ्वी पर न रहें। वस्तुत: भगवान् ने भगवद्गीता में सारे जीवों को सलाह दी है कि वे किसी भी युग में इस भौतिक विश्व में कहीं भी न रहें। इसलिए हर जीव को कलियुग के दबावों का लाभ उठाकर भौतिक जगत की व्यर्थ-प्रकृति को समझने और स्वयं को भगवान् के चरणकमलों में समर्पित करने का लाभ उठाना चाहिए। श्री उद्धव के पद-चिह्नों का अनुसरण करते हुए मनुष्य को चाहिए कि कृष्ण की शरण ग्रहण करे और भगवद्धाम वापस जाय।
 
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