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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 2: कलियुग के लक्षण  » 
 
 
 
 
संक्षेप विवरण:  इस अध्याय में यह बतलाया गया है कि जब कलियुग के दुर्गुण असह्य हद तक बढ़ जायेंगे तो भगवान् कल्कि के रूप में अधर्म में रत लोगों का विनाश करने के लिए अवतरित होंगे।...
 
श्लोक 1:  शुकदेव गोस्वामी ने कहा : हे राजा, तब कलियुग के प्रबल प्रभाव से धर्म, सत्य, पवित्रता, क्षमा, दया, आयु, शारीरिक बल तथा स्मरणशक्ति दिन प्रतिदिन घटते जायेंगे।
 
श्लोक 2:  कलियुग में एकमात्र सम्पत्ति को ही मनुष्य के उत्तम जन्म, उचित व्यवहार तथा सद्गुणों का लक्षण माना जायेगा। कानून तथा न्याय तो मनुष्य के बल के अनुसार ही लागू होंगे।
 
श्लोक 3:  पुरुष तथा स्त्रियाँ केवल ऊपरी आकर्षण के कारण एकसाथ रहेंगे और व्यापार की सफलता कपट पर निर्भर करेगी। पुरुषत्व तथा स्त्रीत्व का निर्णय कामशास्त्र में उनकी निपुणता के अनुसार किया जायेगा और ब्राह्मणत्व जनेऊ पहनने पर निर्भर करेगा।
 
श्लोक 4:  मनुष्य का आध्यात्मिक पद मात्र बाह्य प्रतीकों से सुनिश्चित होगा और इसी आधार पर लोग एक आश्रम छोड़ कर दूसरे आश्रम को स्वीकार करेंगे। यदि किसी की जीविका उत्तम नहीं है, तो उस व्यक्ति के औचित्य में सन्देह किया जायेगा। और जो चिकनी-चुपड़ी बातें बनाने में चतुर होगा वह विद्वान पंडित माना जायेगा।
 
श्लोक 5:  यदि किसी व्यक्ति के पास धन नहीं है, तो वह अपवित्र माना जायेगा और दिखावे को गुण मान लिया जायेगा। विवाह मौखिक स्वीकृति के द्वारा व्यवस्थित होगा और कोई भी व्यक्ति अपने को जनता के बीच आने के लिए योग्य समझेगा यदि उसने केवल स्नान कर लिया हो।
 
श्लोक 6:  तीर्थस्थान को दूरस्थ जलाशय और सौन्दर्य को मनुष्य की केश-सज्जा पर आश्रित, माना जायेगा। उदर-भरण जीवन का लक्ष्य बन जायेगा और जो जितना ढीठ होगा उसे उतना ही सत्यवादी मान लिया जायेगा। जो व्यक्ति परिवार का पालन-पोषण कर सकता है, वह दक्ष समझा जायेगा। धर्म का अनुसरण मात्र यश के लिए किया जायेगा।
 
श्लोक 7:  इस तरह ज्यों-ज्यों पृथ्वी भ्रष्ट जनता से भरती जायेगी, त्यों-त्यों समस्त वर्णों में से जो अपने को सबसे बलवान दिखला सकेगा वह राजनैतिक शक्ति प्राप्त करेगा।
 
श्लोक 8:  जनता ऐसे लोभी तथा निष्ठुर शासकों द्वारा, जिनका आचरण सामान्य चोरों जैसा होगा, अपनी पत्नियाँ तथा सम्पत्ति छीन लिये जाने पर, पर्वतों तथा जंगलों में भाग जायेगी।
 
श्लोक 9:  अकाल तथा अत्यधिक कर से सताये हुए लोग पत्तियाँ, जड़ें, मांस, जंगली शहद, फल, फूल तथा बीज खाने के लिए बाध्य होंगे। सूखे से पीडि़त होकर वे पूर्णतया विनष्ट हो जायेंगे।
 
श्लोक 10:  जनता को शीत, वात, तपन, वर्षा तथा हिम से अत्यधिक कष्ट उठाना पड़ेगा। लोग आपसी झगड़ों, भूख, प्यास, रोग तथा अत्यधिक चिन्ता से भी पीडि़त होते रहेंगे।
 
श्लोक 11:  कलियुग में मनुष्यों की अधिकतम आयु पचास वर्ष हो जायेगी।
 
श्लोक 12-16:  कलियुग समाप्त होने तक सभी प्राणियों के शरीर आकार में अत्यन्त छोटे हो जायेंगे और वर्णाश्रम मानने वालों के धार्मिक सिद्धान्त विनष्ट हो जायेंगे। मानव समाज वेदपथ को पूरी तरह भूल जायेगा और तथाकथित धर्म प्राय: नास्तिक होगा। राजे प्राय: चोर हो जायेंगे; लोगों का पेशा चोरी करना, झूठ बोलना तथा व्यर्थ हिंसा करना हो जायेगा और सारे सामाजिक वर्ण शूद्रों के स्तर तक नीचे गिर जायेंगे। गौवें बकरियों जैसी होंगी; आश्रम संसारी घरों से भिन्न नहीं होंगे तथा पारिवारिक सम्बन्ध तात्कालिक विवाह बंधन से आगे नहीं जायेंगे। अधिकांश वृक्ष तथा जड़ी-बूटियाँ छोटी होंगी और सारे वृक्ष बौने शमी वृक्षों जैसे प्रतीत होंगे। बादल बिजली से भरे होंगे; घर पवित्रता से रहित तथा सारे मनुष्य गधों जैसे हो जायेंगे। उस समय भगवान् पृथ्वी पर प्रकट होंगे। वे शुद्ध सतोगुण की शक्ति से कर्म करते हुए शाश्वत धर्म की रक्षा करेंगे।
 
श्लोक 17:  भगवान् विष्णु जोकि सारे जड़ तथा चेतन प्राणियों के गुरु तथा सबों के परमात्मा हैं, धर्म की रक्षा करने तथा अपने सन्त भक्तों को भौतिक कर्मफल से छुटकारा दिलाने के लिए जन्म लेते हैं।
 
श्लोक 18:  भगवान् कल्कि शम्भल ग्राम के अत्यन्त निपुण ब्राह्मण महात्मा विष्णुयशा के घर में प्रकट होंगे।
 
श्लोक 19-20:  ब्रह्माण्ड के स्वामी भगवान् कल्कि अपने तेज घोड़े देवदत्त पर सवार होंगे और हाथ में तलवार लेकर, ईश्वर के आठ योग ऐश्वर्यों तथा आठ विशिष्ट गुणों को प्रदर्शित करते हुए, पृथ्वी पर विचरण करेंगे। वे अपना अद्वितीय तेज प्रदर्शित करते हुए तथा तेज चाल से सवारी करते हुए, उन करोड़ों चोरों का वध करेंगे जो राजाओं के वेश में रहने का दुस्साहस कर रहे होंगे।
 
श्लोक 21:  जब सारे धूर्त राजा मारे जा चुकेंगे, तो शहरों तथा कस्बों के निवासी, भगवान् वासुदेव को लेपित चन्दन तथा अन्य प्रसाधनों की सुगन्धि को लाती हुई पवित्र वायु का अनुभव करेंगे और उससे उनके मन आध्यात्मिक रूप से शुद्ध हो जायेंगे।
 
श्लोक 22:  जब भगवान् वासुदेव बचे हुए नागरिकों के हृदयों में अपने दिव्य सात्विक रूप में प्रकट होते हैं, वे फिर से पृथ्वी की जनसंख्या को काफी बढ़ा देंगे।
 
श्लोक 23:  जब पृथ्वी पर धर्म के पालनहारे भगवान्, कल्कि के रूप में, प्रकट हो चुकेंगे, तो सत्ययुग प्रारम्भ होगा और मानव समाज सात्विक सन्तानें उत्पन्न करेगा।
 
श्लोक 24:  जब चन्द्रमा, सूर्य तथा बृहस्पति एकसाथ कर्कट राशि में होते हैं और तीनों एक ही समय पुष्य नक्षत्र में प्रवेश करते हैं, ठीक उसी क्षण सत्य या कृतयुग प्रारम्भ होगा।
 
श्लोक 25:  इस तरह मैंने सूर्य तथा चन्द्र वंशों—भूत, वर्तमान तथा भविष्य—के सारे राजाओं का वर्णन कर दिया है।
 
श्लोक 26:  तुम्हारे जन्म से लेकर राजा नन्द के राजतिलक तक ११५० वर्ष बीत चुकेंगे।
 
श्लोक 27-28:  सप्तर्षि मण्डल के सात तारों में से पुलह तथा क्रतु ही सबसे पहले रात्रिकालीन आकाश में उदय होते हैं। यदि उनके मध्य बिन्दु से होकर उत्तर दक्षिण को एक रेखा खींची जाय तो यह जिस नक्षत्र से होकर गुजरती है, वह उस काल का प्रधान नक्षत्र माना जाता है। सप्तर्षिगण एक सौ मानवी वर्षों तक उस विशेष नक्षत्र से जुड़े रहते हैं। सम्प्रति तुम्हारे जीवन-काल में वे मघा नक्षत्र में स्थित हैं।
 
श्लोक 29:  भगवान् विष्णु सूर्य के समान तेजवान् हैं और कृष्ण कहलाते हैं। जब वे वैकुण्ठ-लोक वापस चले गये, तो इस जगत में कलि ने प्रवेश किया और तब लोग पापकर्मों में आनन्द लेने लगे।
 
श्लोक 30:  जब तक लक्ष्मीपति भगवान् श्रीकृष्ण अपने चरणकमलों से पृथ्वी का स्पर्श करते रहे, तब तक कलि इस लोक का दमन करने में असमर्थ रहा।
 
श्लोक 31:  जब सप्तर्षि मण्डल मघा नक्षत्र से होकर गुजरता है, तो कलियुग प्रारम्भ होता है। यह देवताओं के १,२०० वर्षों तक रहता है।
 
श्लोक 32:  जब सप्तर्षि मघा से चल कर पूर्वाषाढा में जायेंगे तो कलि अपनी पूर्ण शक्ति में होगा और राजा नन्द तथा उसके वंश से इसका सूत्रपात होगा।
 
श्लोक 33:  जो लोग भूतकाल को अच्छी तरह समझते हैं, वे यह कहते हैं कि जिस दिन भगवान् कृष्ण ने वैकुण्ठ-लोक के लिए प्रस्थान किया, उसी दिन से कलियुग का प्रभाव शुरू हो गया।
 
श्लोक 34:  कलियुग के एक हजार दैवी वर्षों के बाद, सत्ययुग पुन: प्रकट होगा। उस समय सारे मनुष्यों के मन स्वयं प्रकाशमान् हो उठेंगे।
 
श्लोक 35:  इस प्रकार मैंने मनु के राजवंश का वर्णन, जिस रूप में वह पृथ्वी पर विख्यात है, कह सुनाया। इसी प्रकार से विविध युगों में रहने वाले वैश्यों, शूद्रों तथा ब्राह्मणों के इतिहास का अध्ययन किया जा सकता है।
 
श्लोक 36:  ये पुरुष जोकि महात्मा थे अब केवल अपने नामों से जाने जाते हैं। वे भूतकाल के विवरणों में ही पाये जाते हैं और पृथ्वी पर केवल उनका यश रहता है।
 
श्लोक 37:  महाराज शान्तनु का भाई देवापि तथा इक्ष्वाकु वंशी मरु, दोनों ही महान् योगशक्ति से युक्त हैं और अब भी कलाप ग्राम में रह रहे हैं।
 
श्लोक 38:  कलियुग के अन्त में, ये दोनों ही राजा भगवान् वासुदेव का आदेश पाकर, मानव समाज में लौट आयेंगे और मनुष्य के शाश्वत धर्म की पुन: स्थापना करेंगे जिसमें वर्ण तथा आश्रम का विभाजन पूर्ववत् रहेगा।
 
श्लोक 39:  इस पृथ्वी पर जीवों के बीच चार युगों का—सत्य, त्रेता, द्वापर तथा कलियुग का— चक्र निरन्तर चलता रहता है, जिससे घटनाओं का वही सामान्य अनुक्रम पिष्टपेषित होता है।
 
श्लोक 40:  हे राजा परीक्षित, मेरे द्वारा वर्णित ये सारे राजे तथा अन्य सारे मनुष्य इस पृथ्वी पर आते हैं, अपना प्रभुत्व जताते हैं किन्तु अन्त में उन्हें यह जगत त्यागना पड़ता है और वे विनाश को प्राप्त होते हैं।
 
श्लोक 41:  भले ही अभी मनुष्य का शरीर राजा की उपाधि से युक्त हो, किन्तु अन्त में इसका नाम कीड़े, मल या राख हो जायेगा। जो व्यक्ति अपने शरीर के लिए अन्य जीवों को पीड़ा पहुँचाता है, वह अपने हित के विषय में क्या जान सकता है क्योंकि उसके कार्य उसे नरक की ओर ले जाने वाले होते हैं?
 
श्लोक 42:  [भौतिकतावादी राजा सोचता हैं] “यह असीम पृथ्वी मेरे पूर्वजों के अधीन थी और अब मेरी प्रभुसत्ता में है। मैं इसे अपने पुत्रों, पौत्रों तथा अन्य वंशजों के हाथों में रहते जाने की किस तरह व्यवस्था करूँ?”
 
श्लोक 43:  यद्यपि मूर्ख लोग पृथ्वी, जल तथा अग्नि से बने शरीर को “मैं” और इस पृथ्वी को “मेरी” स्वीकार करते हैं, किन्तु अन्तत: उन सबों को अपना शरीर तथा पृथ्वी दोनों त्यागना पड़ा और वे विस्मृति के गर्भ में चले गये।
 
श्लोक 44:  हे राजा परीक्षित, ये सारे राजे जिन्होंने अपने बल से पृथ्वी का भोग करना चाहा, सारे के सारे, काल की शक्ति से ऐतिहासिक वृत्तान्त मात्र बन कर रह गये।
 
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