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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 3: भूमि गीत  »  श्लोक 41
 
 
श्लोक  12.3.41 
कलौ काकिणिकेऽप्यर्थे विगृह्य त्यक्तसौहृदा: ।
त्यक्ष्यन्ति च प्रियान् प्राणान् हनिष्यन्ति स्वकानपि ॥ ४१ ॥
 
शब्दार्थ
कलौ—कलियुग में; काकिणिके—छोटे-से सिक्के के; अपि—भी; अर्थे—हेतु; विगृह्य—शत्रुता उत्पन्न करके; त्यक्त— छोड़ते हुए; सौहृदा:—मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों; त्यक्ष्यन्ति—त्याग देंगे; —तथा; प्रियान्—प्रिय; प्राणान्—अपने जीवनों को; हनिष्यन्ति—मारेंगे; स्वकान्—अपने सगों को; अपि—भी ।.
 
अनुवाद
 
 कलियुग में लोग कुछ ही सिक्कों के लिए शत्रुता ठान लेंगे। वे सारे मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों को त्याग कर स्वयं मरने तथा अपने ही सम्बन्धियों को मार डालने पर उतारू हो जायेंगे।
 
 
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