हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 3: भूमि गीत  »  श्लोक 52
 
 
श्लोक  12.3.52 
कृते यद्ध्यायतो विष्णुं त्रेतायां यजतो मखै: ।
द्वापरे परिचर्यायां कलौ तद्धरिकीर्तनात् ॥ ५२ ॥
 
शब्दार्थ
कृते—सत्ययुग में; यत्—जो; ध्यायत:—ध्यान से; विष्णुम्—एक विष्णु को; त्रेतायाम्—त्रेतायुग में; यजत:—पूजा करने से; मखै:—यज्ञ करने से; द्वापरे—द्वापर युग में; परिचर्यायाम्—भगवान् कृष्ण के चरणकमलों की पूजा करने से; कलौ—कलियुग में; तत्—वही फल (प्राप्त किया जा सकता है); हरि-कीर्तनात्—केवल हरे कृष्ण महामंत्र के कीर्तन से ।.
 
अनुवाद
 
 जो फल सत्ययुग में विष्णु का ध्यान करने से, त्रेतायुग में यज्ञ करने से तथा द्वापर युग में भगवान् के चरणकमलों की सेवा करने से, प्राप्त होता है, वही कलियुग में केवल हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन करके प्राप्त किया जा सकता है।
 
तात्पर्य
 ऐसा ही श्लोक विष्णु पुराण (६.२.१७) में और पद्म पुराण (उत्तर खंड ७२.२५) तथा बृहन्नारदीय पुराण (३८.९७) में भी पाया जाता है—

ध्यायन् कृते यजन् यज्ञैस्त्रैतायां द्वापरेर्चयन्।

यदाप्नोति तदाप्नोति कलौ संकीर्त्य केशवम् ॥

“सत्ययुग में जो ध्यान के द्वारा, त्रेता में यज्ञ करने से तथा द्वापर में कृष्ण के चरणकमलों की पूजा से प्राप्त किया जाता है, उसे कलियुग में भगवान् केशव के नाम-कीर्तन द्वारा प्राप्त किया जाता है।”

श्रील जीव गोस्वामी ने कलियुग में लोगों की पतितावस्था के विषय में ब्रह्मवैवर्त पुराण से उद्धरण दिया है—

अत: कलौ तपोयोगविद्यायज्ञादिका: क्रिया:।

सांगा भवन्ति न कृता: कुशलैरपि देहिभि: ॥

“इस तरह कलियुग में अत्यन्त दक्ष देहधारी आत्माओं द्वारा भी तप, योग-ध्यान, अर्चापूजन, यज्ञ के साथ साथ अन्य गौण कार्यों का अभ्यास ठीक से नहीं चल पाता।” श्रील जीव गोस्वामी ने इस युग में हरे कृष्ण कीर्तन की आवश्यकता के विषय में स्कन्द पुराण के चातुर्मास माहात्म्य का भी उद्धरण दिया है—

तथा चैवोत्तमं लोके तप: श्रीहरिकीर्तनम्।

कलौ युगे विशेषेण विष्णुप्रीत्यै समाचरेत् ॥

“इस तरह इस जगत में जो सर्वाधिक पूर्ण तपस्या की जानी है, वह श्री हरि के नाम का कीर्तन है। विशेष रूप से कलियुग में संकीर्तन द्वारा भगवान् विष्णु को प्रसन्न किया जा सकता है।”

निष्कर्ष यह निकला कि सारे संसार में हरे कृष्ण मंत्र का कीर्तन करने के लिए लोगों को प्रेरित करने हेतु व्यापक प्रचार की आवश्यकता है, जिससे मानव समाज को कलियुग के भयावह समुद्र से बचाया जा सके।

 
इस प्रकार श्रीमद्भागवत के बारहवें स्कन्ध के अन्तर्गत ‘भूमि गीत’ नामक तृतीय अध्याय के श्रील भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद के विनीत सेवकों द्वारा रचित तात्पर्य पूर्ण हुए।
 
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.
   
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥