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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 8: राजा परीक्षित द्वारा पूछे गये प्रश्न  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  2.8.13 
कालस्यानुगतिर्या तु लक्ष्यतेऽण्वी बृहत्यपि ।
यावत्य: कर्मगतयो याद‍ृशीर्द्विजसत्तम ॥ १३ ॥
 
शब्दार्थ
कालस्य—शाश्वत काल का; अनुगति:—प्रारम्भ; या तु—वे जिस रूप में; लक्ष्यते—अनुभव किये जाते हैं; अण्वी—लघु; बृहती—विशाल; अपि—भी; यावत्य:—जब तक; कर्म-गतय:—कर्म के अनुसार; यादृशी:—जिस प्रकार की; द्विज-सत्तम— हे ब्राह्मणों में शुद्धतम ।.
 
अनुवाद
 
 हे ब्राह्मणश्रेष्ठ, कृपा करके मुझे काल की लघु तथा दीर्घ अवधियों एवं कर्म की प्रक्रिया के क्रम में काल के शुभारम्भ के विषय में भी बतलाएँ।
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥