कृपया यह भी समझाएँ कि भगवान् के शरीर में समाहित जीव किस प्रकार उत्पन्न होते हैं और पाखंडीजन किस तरह इस संसार में प्रकट होते हैं? यह भी बताएँ कि किस प्रकार अबद्ध जीवात्माएँ विद्यमान रहती हैं?
तात्पर्य
भगवान् के प्रगतिशील भक्त को प्रामाणिक गुरु से पूछना चाहिए कि सृष्टि के समय भगवान् के शरीर में समाहित जीवात्माएँ किस प्रकार वापस आती हैं। जीवात्माएँ दो प्रकार की होती हैं—नित्यमुक्त जीव तथा नित्यबद्ध जीव। नित्यबद्ध जीव के भी दो प्रकार हैं—आज्ञाकारी तथा अवज्ञाकारी। आज्ञाकारी जीव के पुन: दो भेद हैं—भक्त तथा चिन्तक। चिन्तक भगवान् के शरीर से तादात्म्य चाहते हैं जबकि भक्त अपनी पृथक् सत्ता बनाये रखकर भगवान् की सेवा में निरन्तर लगे रहना चाहते हैं। ऐसे भक्त जो पूर्ण रूप से शुद्ध नहीं होते तथा ज्ञानमार्गी दार्शनिक अगली सृष्टि में और अधिक शुद्धिकरण के लिए पुन: बद्ध हो जाते हैं। ऐसे बद्धजीव भगवान् की भक्ति में प्रगति के साथ मुक्त हो जाते हैं। महाराज परीक्षित ने ये सारे प्रश्न अपने गुरु से पूछे जिससे वह तत्त्व-ज्ञान में निष्णात हो सकें।
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