भगवान् ने पृथ्वी को लाकर जल की सतह पर अपनी दृष्टि के सामने रख छोड़ा और अपनी निजी शक्ति को उसमें स्थानान्तरित कर दिया जिससे वह जल पर तैरती रहे। शत्रु के देखते-देखते, ब्रह्माण्ड के स्रष्टा ब्रह्माजी ने उनकी स्तुति की और अन्य देवताओं ने उन पर फूलों की वर्षा की।
तात्पर्य
असुर लोग यह कभी नहीं समझ पाएंगे कि पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् ने जल पर पृथ्वी को किस प्रकार तैरा दिया, किन्तु भक्तों के लिए भगवान् का यह कृत्य तनिक भी आश्चर्यजनक नहीं है। न केवल पृथ्वी, वरन् न जाने कितने लाखों-करोड़ों लोक, वायु में तैर रहे हैं, उन्हें तैरने की यह शक्ति ईश्वर ने प्रदान की है; इसकी कोई अन्य व्याख्या नहीं है। भौतिकतावादी यह व्याख्या कर सकते हैं कि सभी लोक गुरुत्वाकर्षण के नियमानुसार तैर रहे हैं, किन्तु यह आकर्षण-नियम परमेश्वर के ही नियन्त्रण पर कार्यशील होता है। भगवद्गीता का भी यही कथन है, जिसमें भगवान् के वचन द्वारा पुष्टि की गई है कि चाहे भौतिक नियम हों या प्राकृतिक, अथवा समस्त लोकों की वृद्धि, पालन, उत्पत्ति हो, इन सबके पीछे भगवान् का हाथ है। भगवान् के कार्यकलापों को ब्रह्मा आदि देवता ही समझ सकते हैं, अत: जब उन्होंने भगवान् के असाधारण शौर्य को देखा जिससे वे पृथ्वी को जल की सतह पर रख सके थे तो उन्होंने भगवान् के इस दिव्य कृत्य के लिए उन पर फूलों की बौछार कर दी।
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