शरीर में प्रचुर आभूषण, कंकण तथा सुन्दर स्वर्णिय कवच धारण किये हुए वह असुर एक बड़ी सी गदा लिए भगवान् का पीछा कर रहा था। भगवान् ने उसके भेदने वाले दुर्वचनों को तो सहन कर लिया, किन्तु प्रत्युत्तर में उन्होंने अपना प्रचण्ड क्रोध व्यक्त किया।
तात्पर्य
भगवान् चाहते तो उस असुर को तभी दण्ड दे देते जब वह उनका कटु वचनों से उपहास कर रहा था, किन्तु भगवान् उसको सहन करते रहे जिससे देवता प्रसन्न हों और समझें कि अपना कार्य करते हुए उन्हें असुरों से भयभीत नहीं होना चाहिए। अत: वे अपनी सहनशीलता इसीलिए प्रदर्शित करते रहे जिससे देवताओं का भय दूर हो जाए और वे समझें कि उनकी रक्षा के लिए भगवान् सदैव उपस्थित रहते हैं। असुर द्वारा भगवान् का उपहास कुत्तों के भूकने के समान था; उन्हें उसकी तनिक भी परवाह नहीं थी। वे तो जल में से पृथ्वी के उद्धार-कार्य में व्यस्त थे। भौतिकतावादी असुरों के पास पर्याप्त सोना रहता है और वे यह सोचते हैं कि स्वर्ण की बड़ी मात्रा, भौतिक बल तथा लोकप्रियता उन्हें भगवान् के क्रोध से बचा लेगी।
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