महान् ऋषि मैत्रेय ने उत्तर दिया—भगवान् ब्रह्मा से लोकों में सन्तान उत्पन्न करने का आदेश पाकर पूज्य कर्दम मुनि ने सरस्वती नदी के तट पर दस हजार वर्षों तक तपस्या की।
तात्पर्य
यहाँ पर यह पता चलता है कि सिद्धि प्राप्त करने के पूर्व कर्दम मुनि ने दस हजार वर्षों तक योग में ध्यान धारण किया। इसी प्रकार हमें ज्ञात होता है कि बाल्मीकि मुनि ने भी सिद्धि प्राप्त करने के पूर्व साठ हजार वर्षों तक योग ध्यान का अभ्यास किया। अत: योगाभ्यास को सफलतापूर्वक वे ही सम्पन्न कर सकते हैं जिनका जीवन काफी दीर्घ, यथा एक लाख वर्ष तक हो। उसी स्थिति में योग में सिद्धि प्राप्त हो सकती है, अन्यथा वास्तविक सिद्धि मिलनी दुष्कर है। विधि-विधानों का पालन, इन्द्रियों का निग्रह तथा विभिन्न आसन करना—ये तो प्रारम्भिक अभ्यास मात्र हैं। हमारी समझ में नहीं आता कि मनुष्य इस निरर्थक योग पद्धति से किस प्रकार आकर्षित हो सकते हैं जिसमें यह बताया जाता है कि प्रति दिन केवल पन्द्रह मिनट का ध्यान धरने से ईश्वर के साथ तादात्म्य सिद्धि प्राप्त हो सकती है। यह कलियुग धोखा देने तथा झगडऩे का युग है। वस्तुत: ऐसे महत्त्वहीन प्रस्तावों से योग-सिद्धि प्राप्त करना असम्भव है। उदाहरणार्थ, वैदिक साहित्य स्पष्ट रूप से तीन बार बलपूर्वक कहता है कि इस कलियुग में हरि के पवित्र नाम (हरेर्नाम) के अतिरिक्त कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव—कोई विकल्प नहीं, कोई विकल्प नहीं, कोई विकल्प नहीं।
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