श्री मैत्रेय ने कहा—हे योद्धा विदुर, कर्दम मुनि ने केवल इतना ही कहा और कमलनाभ पूज्य भगवान् विष्णु का चिन्तन करते हुए वह मौन हो गये। वे उसी मौन में हँस पड़े जिससे उनके मुखमण्डल पर देवहूति आकृष्ट हो गई और वह मुनि का ध्यान करने लगी।
तात्पर्य
ऐसा प्रतीत होता है कि कर्दम मुनि मौन होते ही कृष्णभावनामृत में लीन हो गये और भगवान् विष्णु का चिन्तन करने लगे। कृष्णभावनामृत (भक्ति) की यही विधि है। शुद्ध भक्त श्रीकृष्ण के चिन्तन में इतने लीन हो जाते हैं कि उनके कोई दूसरा कार्य ही नहीं रह जाता, भले ही ऊपर से वे कुछ करते दिखें, किन्तु वे मन में निरन्तर श्रीकृष्ण का चिन्तन करते हैं। ऐसे कृष्ण-भक्त की हँसी इतनी आकर्षक होती है कि वह अपनी हँसी से न जाने कितने प्रशंसकों, शिष्यों तथा अनुयायियों के हृदयों को जीत लेता है।
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