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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 22: कर्दममुनि तथा देवहूति का परिणय  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  3.22.22 
सोऽनुज्ञात्वा व्यवसितं महिष्या दुहितु: स्फुटम् ।
तस्मै गुणगणाढ्याय ददौ तुल्यां प्रहर्षित: ॥ २२ ॥
 
शब्दार्थ
स:—वह (सम्राट मनु); अनु—तदनन्तर; ज्ञात्वा—जानकर; व्यवसितम्—दृढ़ संकल्प; महिष्या:—रानी का; दुहितु:—अपनी पुत्री का; स्फुटम्—स्पष्ट रूप से; तस्मै—उसको; गुण-गण-आढ्याय—अनेक गुणों से सम्पन्न; ददौ—अर्पित कर दिया; तुल्याम्—समान, सम (गुणों में); प्रहर्षित:—अत्यधिक प्रसन्न ।.
 
अनुवाद
 
 रानी (शतरूपा) तथा देवहूति दोनों के दृढ़ संकल्प को स्पष्ट रुप से जानलेने पर सम्राट (मनु) ने अपनी पुत्री को समान गुणों से युक्त मुनि (कर्दम) को अर्पित कर दिया।
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥