महारानी शतरूपा ने वर-वधू (बेटी-दामाद) को प्रेमपूर्वक अवसर के अनुकूल अनेक बहुमूल्य भेंटें, यथा आभूषण, वस्त्र तथा गृहस्थी की वस्तुएँ प्रदान कीं।
तात्पर्य
आज भी भारत में कन्यादान के साथ दहेज देने की प्रथा प्रचलित है। दी जाने वाली भेंटें कन्या के पिता की हैसियत (स्थिति) के अनुसार होती हैं। पारिबर्हान् महाधनान् का अर्थ है विवाह के समय दूल्हे को दिया जाने वाला दहेज। यहाँ पर महाधनान् का अर्थ होगा एक महारानी के अनुकूल बहुमूल्य वस्तुओं का दहेज। भूषावास: परिच्छदान् का अर्थ गृहस्थी की वस्तुएँ हैं। एक सम्राट की पुत्री के विवाहोत्सव के अनुकूल सभी प्रकार की वस्तुएँ कर्दम मुनि को, जो अभी तक ब्रह्मचारी थे, दी गईं। दुलहिन के वेश में देवहूति बहुमूल्य आभूषणों एवं वस्त्रों से सुसज्जित थी।
इस प्रकार कर्दम मुनि का विवाह एक योग्य पत्नी के साथ सम्पन्न हुआ और साथ में गृहस्थी की सारी सामग्री प्राप्त हुईं। विवाह की वैदिक रीति में आज भी कन्या के पिता द्वारा वर को ऐसा दहेज दिया जाता है, यहाँ तक कि भारत के अनेक निर्धन परिवार भी दहेज में सैकड़ों-हजारों रुपये व्यय करते हैं। दहेज-प्रथा अवैध नहीं है, जैसा कुछ लोग सिद्ध करने की कोशिश करते हैं। दहेज तो पिता द्वारा सदिच्छा के प्रतीक रूप में कन्या को दिया जाने वाला दान है, जो अनिवार्य है। जहाँ पिता अत्यन्त निर्धन होने के कारण दहेज नहीं दे पाता वहाँ पर फल तथा फूल ही दिये जाने का विधान है। जैसाकि भगवद्गीता में उल्लेख है, भगवान् फल तथा फूल से भी प्रसन्न होते हैं। जहाँ आर्थिक विपन्नता होती है और अन्य किसी प्रकार से दहेज की राशि संग्रह नहीं की जा सकती वहाँ दूल्हे को प्रसन्न करने के लिए फल तथा फूल दिये जा सकते हैं।
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