हे मुनि, कृपापूर्वक मुझ दीन की प्रार्थना सुनें, क्योंकि मेरा मन अपनी पुत्री के स्नेह से अत्यन्त उद्विग्न है।
तात्पर्य
जब कोई शिष्य अपने गुरु से कोई संदेश प्राप्त करके उसे निष्ठापूर्वक सम्पन्न कर लेता है, तो उसे अधिकार है कि वह अपने गुरु से चाहे जिस प्रकार के अनुग्रह के लिए याचना करे। सामान्य रूप से भगवान् का शुद्ध भक्त अथवा प्रामाणिक गुरु का शुद्ध शिष्य भगवान् या गुरु से किसी अनुग्रह की याचना नहीं करता, किन्तु यदि कभी गुरु से किसी प्रकार का अनुग्रह प्राप्त करने की आवश्यकता आ पड़े तो जब तक वह उन्हें पूर्णतया प्रसन्न न कर ले तब तक उसकी याचना नहीं कर सकता। स्वायंभुव मनु अपनी पुत्री के स्नेह के कारण अपने मन की बात प्रकट करना चाह रहे थे कि वे कौन सा काम कराना चाहते हैं।
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