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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 25: भक्तियोग की महिमा  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  3.25.14 
तमिमं ते प्रवक्ष्यामि यमवोचं पुरानघे ।
ऋषीणां श्रोतुकामानां योगं सर्वाङ्गनैपुणम् ॥ १४ ॥
 
शब्दार्थ
तम् इमम्—वही; ते—तुमको; प्रवक्ष्यामि—बतलाऊँगा; यम्—जो; अवोचम्—मैंने बतलाया था; पुरा—पहले; अनघे—हे पूज्य माता; ऋषीणाम्—ऋषियों को; श्रोतु-कामानाम्—सुनने के लिए उत्सुक; योगम्—योग पद्धति; सर्व-अङ्ग—सभी प्रकार से; नैपुणम्—उपयोगी एवं व्यावहारिक ।.
 
अनुवाद
 
 हे परम पवित्र माता, अब मैं आपको वही प्राचीन योग पद्धति समझाऊँगा, जिसे मैंने पहले महान् ऋषियों को समझाया था। यही हर प्रकार से उपयोगी एवं व्यावहारिक है।
 
तात्पर्य
 भगवान् किसी नई योग पद्धति का निर्माण नहीं करते। कभी-कभी यह दावा किया जाता है कि अमुक व्यक्ति ईश्वर का अवतार हो गया है और परम सत्य के एक नवीन नैतिक पक्ष की स्थापना कर रहा है। किन्तु यहाँ हम देखते हैं कि यद्यपि कपिल मुनि स्वयं भगवान् हैं और अपनी माता के लिए नवीन सिद्धान्त (वाद) निर्मित करने में समर्थ हैं, तो भी वे कहते हैं, “मैं उस प्राचीन योग पद्धति को समझाऊँगा जिसे एक बार मैंने ऋषियों को समझाया था, क्योंकि वे इसके विषय में सुनने के लिए उत्कंठित थे।” जब हमारे पास वैदिक शास्त्रों में पहले से सर्वश्रेष्ठ विधि उपलब्ध है, तो फिर नई पद्धति के गढऩे और भोलीभाली जनता को गुमराह करने की क्या आवश्यकता है? आज के जमाने में मानक पद्धति को ठुकराना और योग के नाम पर नव आविष्कृत भ्रष्ट पद्धति प्रस्तुत करना एक फैशन बन चुका है।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥