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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 25: भक्तियोग की महिमा  »  श्लोक 9
 
 
श्लोक  3.25.9 
य आद्यो भगवान् पुंसामीश्वरो वै भवान् किल ।
लोकस्य तमसान्धस्य चक्षु: सूर्य इवोदित: ॥ ९ ॥
 
शब्दार्थ
य:—जो; आद्य:—मूल; भगवान्—भगवान्; पुंसाम्—समस्त जीवों के; ईश्वर:—स्वामी; वै—वास्तव में; भवान्— आप; किल—निस्सन्देह; लोकस्य—ब्रह्माण्ड का; तमसा—अज्ञान के अन्धकार से; अन्धस्य—अन्धे का; चक्षु:— नेत्र; सूर्य:—सूर्य; इव—सदृश; उदित:—उदित, उदय हुआ ।.
 
अनुवाद
 
 आप श्रीभगवान् हैं, जो समस्त जीवों के मूल तथा परमेश्वर हैं। आप ब्रह्माण्ड के अज्ञान रूपी अन्धकार को दूर करने के लिए सूर्य की किरणें विस्तारित करने के लिए उदित हुए हैं।
 
तात्पर्य
 कपिलमुनि पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् कृष्ण के अवतार माने जाते हैं। यहाँ पर आद्य: शब्द का अर्थ है, “समस्त जीवों का मूल” तथा पुंसाम ईश्वर: का अर्थ “जीवों के ईश्वर (स्वामी)।” कपिलमुनि कृष्ण के साक्षात् विस्तार हैं, जो आध्यात्मिक ज्ञान के सूर्य हैं। जिस प्रकार सूर्य ब्रह्माण्ड के अन्धकार को दूर करता है उसी प्रकार जब भगवान् का प्रकाश नीचे उतरता है, तो यह तुरन्त ही माया के अन्धकार को मिटा देता है। हमारे नेत्र हैं, किन्तु सूर्य के प्रकाश के बिना नेत्रों का कोई महत्त्व नहीं है। इसी तरह भगवान् के प्रकाश के बिना या गुरु की अलौकिक कृपा के बिना वह वस्तुओं को उसी रूप में नहीं देख सकता।
 
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