ज्योंही उनकी मुक्ति के लक्षण प्रकट हुए, उन्होंने एक अत्यन्त सुन्दर विमान को आकाश से नीचे उतरते हुए देखा, मानो तेजस्वी पूर्ण चन्द्रमा दशों दिशाओं को आलोकित करते हुए नीचे आ रहा हो।
तात्पर्य
अर्जित ज्ञान कई प्रकार का होता है—प्रत्यक्ष ज्ञान, अधिकारियों से प्राप्त ज्ञान, दिव्य ज्ञान, इन्द्रियातीत ज्ञान और अंतत: आत्म-ज्ञान। जब मनुष्य अवरोही विधि से ज्ञान प्राप्त करने की अवस्था को लाँघ जाता है, तो वह तुरन्त दिव्य पद को प्राप्त हो जाता है। ध्रुव महाराज देहात्मबुद्धि से मुक्त होकर दिव्य ज्ञान को प्राप्त थे, अत: वे दिव्य विमान को देख सकते थे, जो पूर्ण चन्दमा के समान प्रकाशमान था। ज्ञान की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष अनुभूति से ऐसा कर पाना सम्भव नहीं। ऐसा ज्ञान तो भगवान् की विशेष कृपा से प्राप्त होता है। किन्तु भक्ति या कृष्णचेतना की ओर क्रमश: अग्रसर होने से मनुष्य ज्ञान के इस पद को प्राप्त कर सकता है।
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