राजा तथा वहाँ पर उपस्थित पुरोहितों के मनों को मोहित करने के बाद अच्युत भगवान् परव्योम में अपने धाम वापस चले गये।
तात्पर्य
चूँकि भगवान् सर्व-आत्ममय हैं, अत: वे अपना शरीर बदले बिना परव्योम से नीचे आ सकते हैं, इसीलिए वे अच्युत अथवा अचूक कहलाते हैं। जब जीवात्मा इस संसार में आ गिरता है, तो उसे भौतिक शरीर धारण करना होता है और वह भौतिक शरीर-रूप में अच्युत नहीं कहला सकता। चूँकि वह भगवान् की सेवा-कार्य के पद से नीचे पतित होता है, अत: जीव भौतिक जीवन की बद्ध अवस्थाओं में दुख भोगने के लिए अथवा उसका आनंद उठाने के प्रयास में भौतिक शरीर ग्रहण करता है। अत: पतित जीवात्मा च्युत है और भगवान् अच्युत कहलाते हैं। भगवान् सबों के लिए मनमोहक थे—केवल राजा ही के लिए नहीं, अपितु उन पुरोहितों के लिए भी जो वैदिक कर्मकाण्डों के अत्यधिक आदी थे। सर्व-मोहक होने के कारण भगवान् को कृष्ण अर्थात् “सबको आकृष्ट करने वाले” कहा जाता है। महाराज पृथु के यज्ञस्थल में भगवान् क्षीरोदकशायी विष्णु के रूप में प्रकट हुए जो भगवान् श्रीकृष्ण के स्वांश हैं। वे कारणोदकशायी विष्णु के द्वितीय अवतार हैं, जो भौतिक सृष्टि के मूल हैं और गर्भोदकशायी विष्णु के रूप में विस्तार करके प्रत्येक ब्रह्माण्ड में प्रवेश करते हैं। क्षीरोदकशायी विष्णु उन पुरुषों में से एक हैं, जो प्रकृति के भौतिक गुणों को अपने वश में रखते हैं।
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