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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 6: भगवान् ऋषभदेव के कार्यकलाप  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  5.6.10 
येन ह वाव कलौ मनुजापसदा देवमायामोहिता: स्वविधिनियोगशौचचारित्रविहीना देवहेलनान्यपव्रतानि निजनिजेच्छया गृह्णाना अस्‍नानानाचमनाशौचकेशोल्लुञ्चनादीनि कलिनाधर्मबहुलेनोपहतधियो ब्रह्मब्राह्मणयज्ञपुरुषलोकविदूषका: प्रायेण भविष्यन्ति ॥ १० ॥
 
शब्दार्थ
येन—जिस छद्म धार्मिक प्रकृति से; ह वाव—निश्चय ही; कलौ—इस कलियुग में; मनुज-अपसदा:—अत्यन्त नीच व्यक्ति; देव- माया-मोहिता:—भगवान् की बहिरंगा शक्ति द्वारा मोहग्रस्त, शक्ति या माया से मोहित; स्व-विधि-नियोग-शौच-चारित्र विहीना:—अपने कर्तव्यों के अनुसार निर्मित विधानों, स्वच्छता तथा चरित्र से विहीन (शास्त्र विहित आचारों तथा शौच से रहित); देव-हेलनानि—भगवान् के प्रति तिरस्कार; अपव्रतानि—अपवित्र व्रत, पाखंड; निज-निज-इच्छया—अपनी अपनी रुचि के अनुसार; गृह्णाना:—स्वीकार करते हुए; अस्नान-अनाचमन-अशौच-केश-उल्लुञ्चन-आदीनि—गढ़े हुए धार्मिक नियम यथा अस्नान (न नहाना), मुख न धोना, अशुद्ध रहना तथा केश नुचवाना; कलिना—कलियुग के प्रभाव से; अधर्म-बहुलेन— अधर्म की बहुलता वाले; उपहत-धिय:—जिसका अन्त:करण विनष्ट हो गया है, बुद्धिहीन; ब्रह्म-ब्राह्मण-यज्ञ-पुरुष-लोक- विदूषका:—वेद, ब्राह्मण, यज्ञ, भगवान् तथा भक्तों की निन्दा करने वाले; प्रायेण—प्राय:; भविष्यन्ति—होंगे ।.
 
अनुवाद
 
 अधम तथा परमेश्वर की माया से मोहित व्यक्ति मूल वर्णाश्रम धर्म तथा उसके नियमों का परित्याग कर देंगे। वे नित्य तीन बार स्नान करना और ईश्वर की आराधना करना छोड़ देंगे। वे शौच तथा परमेश्वर को त्याग कर अटपटे नियमों को ग्रहण करेंगे। नियमित स्नान न करने अथवा अपना मुख न धोने से वे सदा गंदे रहेंगे और अपने केश नुचवाएँगे। ढोंग धर्म का अनुसरण करते हुए वे फूलेंगे, फलेंगे। इस कलिकाल में लोग अधार्मिक पद्धतियों की ओर अधिक उन्मुख होंगे। फलस्वरूप वे वेद, वेदों के अनुयायी ब्राह्मणों, भगवान् तथा अनेक भक्तों का उपहास करेंगे।
 
तात्पर्य
 आजकल पाश्चात्य देशों के हिप्पी इस वर्णन के अनुरूप हैं। वे गैर-जिम्मेदार तथा असंयमी होते हैं। वे स्नान नहीं करते और वैदिक ज्ञान का मजाक उड़ाते हैं। वे नवीन जीवन-शैलियों एवं धर्मों को गढ़ते रहते हैं। इस समय हिप्पियों के अनेक समूह हैं, किन्तु इनका मूल स्रोत राजा अर्हत् था जिसने परमहंस अवस्था को प्राप्त भगवान् ऋषभदेव के कार्यकलापों का अनुकरण किया। अर्हत् को इस बात का ध्यान नहीं हुआ कि यद्यपि ऋषभदेव पागल जैसा आचरण कर रहे थे, किन्तु उनके मल तथा पुरीष सुगन्धित थे जिससे मीलों दूर के प्रान्त सुवासित रहते थे। राजा अर्हत् के अनुयायी जैन कहलाये और बाद में अनेक लोगों ने उनका अनुसरण किया विशेष रूप से हिप्पी उल्लेखनीय हैं, जो मायावाद दर्शन की शाखा से सम्बद्ध हैं, क्योंकि वे अपने को भगवान् मानते हैं। ऐसे लोग वैदिक नियमों के असली अनुयायी आदर्श ब्राह्मणों का आदर नहीं करते और न उनमें पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् अर्थात् परब्रह्म के प्रति आदर-भाव रहता है। इस कलियुग के प्रभाव से वे तरह-तरह के झूठे धर्म गढ़ते रहते हैं।
 
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