हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 18: राजा इन्द्र का वध करने के लिए दिति का व्रत  »  श्लोक 33-34
 
 
श्लोक  6.18.33-34 
पतिरेव हि नारीणां दैवतं परमं स्मृतम् ।
मानस: सर्वभूतानां वासुदेव: श्रिय: पति: ॥ ३३ ॥
स एव देवतालिङ्गैर्नामरूपविकल्पितै: ।
इज्यते भगवान् पुम्भि: स्त्रीभिश्च पतिरूपधृक् ॥ ३४ ॥
 
शब्दार्थ
पति:—पति; एव—निस्सन्देह; हि—निश्चय ही; नारीणाम्—स्त्रियों की; दैवतम्—देवता; परमम्—परम, सर्वश्रेष्ठ; स्मृतम्—माना जाता है; मानस:—हृदय में स्थित; सर्व-भूतानाम्—समस्त जीवात्माओं के; वासुदेव:—वासुदेव; श्रिय:— सौभाग्य की देवी का; पति:—पति; स:—वह; एव—निश्चय ही; देवता-लिङ्गै:—देवताओं के स्वरूपों से; नाम—नाम; रूप—स्वरूप; विकल्पितै:—कल्पित; इज्यते—पूजा जाता है; भगवान्—श्रीभगवान्; पुम्भि:—मनुष्यों के द्वारा; स्त्रीभि:—स्त्रियों के द्वारा; —भी; पति-रूप-धृक्—पति के रूप में ।.
 
अनुवाद
 
 पति ही स्त्रियों के लिए परम देवता होता है। लक्ष्मीपति भगवान् वासुदेव सबों के हृदय में स्थित हैं और सकाम भक्तों द्वारा विभिन्न नामों तथा देव-रूपों में पूजे जाते हैं। इसी प्रकार पति भगवान् के रूप में पत्नी के लिए पूजा की वस्तु है।
 
तात्पर्य
 भगवद्गीता (९.२३) में श्रीकृष्ण का कथन है—

येऽप्यन्यदेवता भक्ता यजन्ते श्रद्धयान्विता:।

तेऽपि मामेव कौन्तेय यजन्त्यविधिपूर्वकम् ॥

“हे अर्जुन! अन्य देवताओं की यज्ञ द्वारा जो भी उपासना की जाती है, वह वास्तव में मेरे ही लिए होती है किन्तु यह बिना वास्तविक समझ-बूझ के की जाती है।” देवतागण तो पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् के सहायकों की तरह हैं, जो उनके हाथ-पाँव की भाँति कार्य करते हैं। जो श्रीभगवान् के वास्तविक सम्पर्क में नहीं है और न उनकी वास्तविक स्थिति को समझ सकता है उसे कभी-कभी यह सलाह दी जाती है कि देवताओं की पूजा करे क्योंकि वे भगवान् के अंगस्वरूप हैं। यदि स्त्रियाँ, जो साधारणतया अपने पतियों के प्रति अत्यधिक आसक्त होती हैं अपने पतियों को वासुदेव के प्रतिनिधियों के रूप में पूजें तो उन्हें उसी प्रकार लाभ मिल सकता है, जिस प्रकार अजामिल को अपने पुत्र नारायण का नाम लेने से। यद्यपि अजामिल को अपने पुत्र से प्यार था, किन्तु नारायण नाम के प्रति उसकी आसक्ति होने से और उस नाम का बारम्बार जप करने से ही उसे मुक्ति मिल सकी। भारत में आज भी पति को पति-गुरु कहा जाता है। यदि पति तथा पत्नी कृष्णभक्ति को बढ़ाने के लिए एक दूसरे पर आसक्त रहें तो इस प्रगति के लिए उनका यह सहयोग अत्यन्त लाभप्रद होगा। यद्यपि वैदिक मंत्रों में कभी-कभी इन्द्र तथा अग्नि के नामों का उच्चारण किया जाता है (इन्द्राय स्वाहा, अग्नये स्वाहा) किन्तु वैदिक यज्ञ वास्तव में भगवान् विष्णु को प्रसन्न करने के लिए ही किए जाते हैं। जब तक कोई भौतिक इन्द्रिय-तृप्ति के प्रति अधिक आसक्त रहता है तब तक उसे देवताओं या अपने पति की पूजा करनी चाहिए।

 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.
   
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥