इत्थम्—इस प्रकार; नृ—यथा मनुष्य (यथा कृष्ण तथा रामचन्द्र); तिर्यक्—पशु की तरह का (जेसै शूकर); ऋषि—महान् ऋषि की तरह (परशुराम); देव—देवता गण; झष—लचर (जैसे मछली तथा कछुवा); अवतारै:—ऐसे विभिन्न अवतारों के द्वारा; लोकान्—सारे लोकों को; विभावयसि—रक्षा करते हो; हंसि—(कभी-कभी) मारते हो; जगत् प्रतीपान्—इस संसार में बाधा उत्पन्न करने वालों को; धर्मम्—धार्मिक सिद्धान्तों को; महा-पुरुष—हे महान् पुरुष; पासि—रक्षा करते हो; युग- अनुवृत्तम्—विभिन्न युगों के अनुसार; छन्न:—ढका हुआ; कलौ—कलियुग में; यत्—क्योंकि; अभव:—हुए हैं (और भविष्य में होंगे); त्रि-युग:—त्रियुग नामक; अथ—अतएव; स:—वही पुरुष; त्वम्—तुम ।.
अनुवाद
हे प्रभु, इस प्रकार आप विभिन्न अवतारों में जैसे मनुष्य, पशु, ऋषि, देवता, मत्स्य या कच्छप के रूप में प्रकट होते हैं और इस प्रकार से विभिन्न लोकों में सम्पूर्ण सृष्टि का पालन करते हैं तथा आसुरीं सिद्धन्तों का वध करते हैं। हे भगवान्, आप युग के अनुसार धार्मिक सिद्धान्तों की रक्षा करते हैं। किन्तु कलियुग में आप स्वयं को भगवान् के रूप में घोषित नहीं करते। इसलिए आप ‘त्रियुग’ कहलाते हैं, अर्थात् तीन युगों में प्रकट होने वाले भगवान्।
तात्पर्य
जिस प्रकार मधु तथा कैटभ के आक्रमण से ब्रह्मा की रक्षा करने के लिए भगवान् प्रकट हुए थे उसी प्रकार वे परम भक्त प्रह्लाद महाराज की रक्षा करने के लिए भी प्रकट हुए। इसी प्रकार कलियुग के पतित जीवों की रक्षा के लिए भगवान् चैतन्य प्रकट हुए। युग चार हैं—सत्य, त्रेता, द्वापर तथा कलियुग। कलियुग को छोडक़र शेष तीन युगों में भगवान् विभिन्न अवतारों में प्रकट होकर भगवान् कहलाते हैं, किन्तु यद्यपि कलियुग में श्री चैतन्य महाप्रभु भगवान् हैं, किन्तु उन्होंने कभी भी अपने आपको भगवान् नहीं कहा। उल्टे, जब-जब उन्हें कृष्ण के समान होने वाले सम्बोधित किया गया तब-तब वे अपने हाथों से अपने कान बन्द कर लेते थे और अपने आपको कृष्ण कहने से मना कर देते थे, क्योंकि वे एक भक्त की भूमिका निभा रहे थे। वे जानते थे कि कलियुग में अपने आपको ईश्वर का नकली अवतार कहने वाले अनेक लोग होंगे, अतएव वे अपने आपको भगवान् कहे जाने से कतराते रहे। किन्तु अनेक वैदिक ग्रथों में, विशेष रूप से भागवत (११.५.३२) में चैतन्य महाप्रभु को भगवान् स्वीकार किया जाता है—
कलियुग में बुद्धिमान लोग भगवान् की पूजा श्री चैतन्य महाप्रभु के रूप में करते हैं, जो नित्यानन्द, अद्वैत, गदाधर तथा श्रीवास जैसे अपने पार्षदों से सदैव घिरे रहते हैं। समग्र कृष्णभावनामृत आन्दोलन सङ्कीर्तन आन्दोलन पर आधारित है, जिसका सूत्रपात श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा किया गया। अतएव जो भी व्यक्ति सङ्कीर्तन आन्दोलन के माध्यम से भगवान् को समझने का प्रयास करता है, वह प्रत्येक वस्तु को भलीभाँति जान लेता है। वह सुममेधस् अर्थात् प्रचुर ज्ञानवान् व्यक्ति होता है।
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