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श्लोक 8.11.16  |
ततो रथो मातलिना हरिभिर्दशशतैर्वृत: ।
आनीतो द्विपमुत्सृज्य रथमारुरुहे विभु: ॥ १६ ॥ |
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शब्दार्थ |
तत:—तत्पश्चात्; रथ:—रथ; मातलिना—मातलि नामक सारथी द्वारा; हरिभि:—घोड़ों से; दश-शतै:—सौ का दस गुना, एक हजार; वृत:—जुते हुए; आनीत:—लाया जाकर; द्विपम्—हाथी को; उत्सृज्य—छोडक़र; रथम्—रथ में; आरुरुहे—चढ़ गया; विभु:—महान् इन्द्र ।. |
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अनुवाद |
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तत्पश्चात् इन्द्र का सारथी मातलि इन्द्र का रथ ले आया जिसे एक हजार घोड़े खींच रहे थे। तब इन्द्र ने अपने हाथी को छोड़ दिया और वह रथ पर चढ़ गया। |
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