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श्लोक 8.11.24  |
सर्वत: शरकूटेन शक्रं सरथसारथिम् ।
छादयामासुरसुरा: प्रावृट्सूर्यमिवाम्बुदा: ॥ २४ ॥ |
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शब्दार्थ |
सर्वत:—चारों ओर; शर-कूटेन—बाणों की घनी वर्षा से; शक्रम्—इन्द्र को; स-रथ—रथ सहित; सारथिम्—सारथी को; छादयाम् आसु:—ढक दिया; असुरा:—सारे असुरों ने; प्रावृट्—वर्षा ऋतु में; सूर्यम्—सूर्य को; इव—सदृश; अम्बु-दा:— बादल ।. |
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अनुवाद |
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अन्य असुरों ने अपने बाणों की निरन्तर वर्षा से इन्द्र को उसके रथ तथा सारथी सहित ढक दिया जिस तरह वर्षा ऋतु में बादल सूर्य को ढक लेते हैं। |
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