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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 20: बलि महाराज द्वारा ब्रह्माण्ड समर्पण  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  8.20.18 
यजमान: स्वयं तस्य श्रीमत् पादयुगं मुदा ।
अवनिज्यावहन्मूर्ध्नि तदपो विश्वपावनी: ॥ १८ ॥
 
शब्दार्थ
यजमान:—पूजा करने वाला (बलि महाराज); स्वयम्—स्वयम्; तस्य—वामनदेव के; श्रीमत् पाद-युगम्—शुभ एवं सुन्दर चरणकमल युगुल; मुदा—प्रसन्नतापूर्वक; अवनिज्य—ठीक से धोकर; अवहत्—चढ़ाया; मूर्ध्नि—सिर पर; तत्—वह; अप:— जल; विश्व-पावनी:—सारे संसार को मुक्ति देने वाला ।.
 
अनुवाद
 
 वामनदेव की पूजा करने वाले बलि महाराज ने प्रसन्नतापूर्वक भगवान् के चरणकमलों को धोया; फिर उस जल को अपने सिर पर चढ़ाया क्योंकि वह जल सम्पूर्ण विश्व का उद्धार करता है।
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥