उस समय र्स्वगलोक के निवासी—यथा देवता, गन्धर्व, विद्याधर, सिद्ध तथा चारण सभी—बलि महाराज के इस सरल द्वैतरहित कार्य से परम प्रसन्न हुए और उन्होंने उनके गुणों की प्रशंसा की तथा उन पर लाखों फूल बरसाये।
तात्पर्य
आर्जवम् अर्थात् सरलता या द्वैत से रहित होना ब्राह्मण तथा वैष्णव का गुण है। वैष्णव को स्वत: ब्राह्मण के सारे गुण प्राप्त हो जाते हैं—
यस्यास्ति भक्तिर्भगवत्यकिञ्चना सर्वैर्गुणैस्तत्र समासते सुरा: (भागवत ५.१८.१२) वैष्णव में ब्राह्मण के सारे गुण—यथा सत्य, शम, दम, तितिक्षा तथा आर्जव होने चाहिए। वैष्णव के आचरण में दोगलापन नहीं हो सकता। जब बलि महाराज ने अचल श्रद्धा तथा भक्ति के साथ भगवान् विष्णु के चरणकमलों की सेवा की तो र्स्वगलोक के समस्त वासियों ने इस कार्य की परम प्रशंसा की।
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