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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 20: बलि महाराज द्वारा ब्रह्माण्ड समर्पण  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  8.20.30 
सर्वात्मनीदं भुवनं निरीक्ष्य
सर्वेऽसुरा: कश्मलमापुरङ्ग ।
सुदर्शनं चक्रमसह्यतेजो
धनुश्च शार्ङ्गं स्तनयित्नुघोषम् ॥ ३० ॥
 
शब्दार्थ
सर्व-आत्मनि—परम पूर्ण या भगवान् में; इदम्—यह ब्रह्माण्ड; भुवनम्—तीनों लोक; निरीक्ष्य—देखकर; सर्वे—सभी; असुरा:—असुर, बलि महाराज के पार्षद; कश्मलम्—विलाप; आपु:—प्राप्त किया; अङ्ग—हे राजा; सुदर्शनम्—सुदर्शन नामक; चक्रम्—चक्र; असह्य—न सहा जाने योग्य; तेज:—ताप; धनु: च—तथा धनुष; शार्ङ्गम्—शार्ङ्ग नामक; स्तनयित्नु— घिरे हुए बादलों की ध्वनि; घोषम्—की तरह ध्वनि करती ।.
 
अनुवाद
 
 हे राजा! जब महाराज बलि के समस्त असुर अनुयायियों ने भगवान् के विराट रूप को देखा, जिन्होंने अपने शरीर के भीतर सब कुछ समा लिया था, और जब उन्होंने भगवान् के हाथ में सुदर्शन नामक चक्र को देखा जो असह्य ताप उत्पन्न करता है और जब उन्होंने उनके धनुष की कोलाहलपूर्ण ध्वनि सुनी तो इन सब के कारण उनके हृदयों में विषाद उत्पन्न हो गया।
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥