असत्य से बढक़र पापमय कुछ भी नहीं है। इसी कारण से एक बार माता पृथ्वी ने कहा था, “मैं किसी भी भारी बोझ को सहन कर सकती हूँ, किसी झूठे व्यक्ति को नहीं।”
तात्पर्य
पृथ्वी पर अनेक विशाल पर्वत तथा सागर हैं, जो अत्यन्त भारी हैं और उनको धारण करने में माता पृथ्वी को कोई कठिनाई नहीं होती। किन्तु वह अपने को तब अत्यधिक बोझिल अनुभव करती है जब उसे एक भी लबार (झूठे) व्यक्ति को वहन करना पड़ता है। कहा जाता है कि कलियुग में असत्य एक सामान्य बात है—मायैव व्यावहारिके (भागवत १२.२.३)। यहाँ तक कि सामान्य व्यवहार में भी लोग अनेक झूठ बोलने के आदी होते हैं। कोई भी झूठ बोलने के पापफलों से मुक्त नहीं है। ऐसी परिस्थिति में कोई भी यह अनुमान लगा सकता है कि पृथ्वी कितनी बोझिल हो चुकी है! पृथ्वी क्या, सारा ब्रह्माण्ड बोझिल है।
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