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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 22: अजमीढ के वंशज  »  श्लोक 18-19
 
 
श्लोक  9.22.18-19 
सोमवंशे कलौ नष्टे कृतादौ स्थापयिष्यति ।
बाह्लीकात्सोमदत्तोऽभूद् भूरिर्भूरिश्रवास्तत: ॥ १८ ॥
शलश्च शान्तनोरासीद् गङ्गायां भीष्म आत्मवान् ।
सर्वधर्मविदां श्रेष्ठो महाभागवत: कवि: ॥ १९ ॥
 
शब्दार्थ
सोम-वंशे—सोमवंश के; कलौ—कलियुग में; नष्टे—नष्ट होने पर; कृत-आदौ—अगले सत्ययुग के प्रारम्भ में; स्थापयिष्यति— स्थापना करेगा; बाह्लीकात्—बाह्लीक से; सोमदत्त:—सोमदत्त; अभूत्—उत्पन्न हुआ; भूरि:—भूरि; भूरि-श्रवा:—भूरिश्रवा; तत:— तत्पश्चात्; शल: च—शल; शान्तनो:—शान्तनु से; आसीत्—उत्पन्न हुआ; गङ्गायाम्—शान्तनु की पत्नी गंगा के गर्भ से; भीष्म:— भीष्म; आत्मवान्—स्वरूपसिद्ध; सर्व-धर्म-विदाम्—सारे धार्मिक व्यक्तियों का; श्रेष्ठ:—श्रेष्ठ; महा-भागवत:—महान् भक्त; कवि:— तथा विद्वान ।.
 
अनुवाद
 
 इस कलियुग में सोमवंश के समाप्त होने पर और अगले सतयुग के प्रारम्भ में देवापि पुन: इस संसार में सोमवंश की स्थापना करेगा। (शान्तनु के भाई) बाह्लीक से सोमदत्त नामक पुत्र उत्पन्न हुआ जिसके तीन पुत्र हुए—भूरि, भूरिश्रवा तथा शल। शान्तनु की दूसरी पत्नी गंगा के गर्भ से भीष्म उत्पन्न हुआ जो स्वरूपसिद्ध, सभी धार्मिक व्यक्तियों में श्रेष्ठ, महान् भक्त एवं विद्वान था।
 
 
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