तत्पश्चात् भगवान् श्रीकृष्ण ने संसार का भार कम करने के लिए पारिवारिक सदस्यों के बीच मनमुटाव उत्पन्न किया। उन्होंने अपनी चितवन मात्र से कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि में सारे आसुरी राजाओं का संहार कर दिया और अर्जुन को विजयी घोषित किया। अन्त में वे उद्धव को दिव्य जीवन तथा भक्ति के विषय में उपदेश देकर अपने आदि रूप में अपने धाम को वापस चले गये।
तात्पर्य
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। कृष्ण का कार्य कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में पूरा हुआ क्योंकि भगवान् की कृपा से अर्जुन विजयी हुआ। वह उनका महान् भक्त था और अन्य लोग भगवान् की चितवन मात्र से मारे गये जिससे उनके सारे पापकर्म धुल गये और वे सारूप्य को प्राप्त हो सके। अन्त में भगवान् कृष्ण ने उद्धव को भक्ति के दिव्य जीवन का उपदेश दिया और समय आने पर वे अपने धाम लौट गये। भगवद्गीता के रूप में भगवान् के उपदेश ज्ञान तथा वैराग्य से पूर्ण हैं। मनुष्य जीवन में ये दो बातें सीख लेनी चाहिए कि भौतिक जगत से किस प्रकार विरक्त हुआ जाय और आध्यात्मिक जीवन में किस प्रकार पूर्ण ज्ञान प्राप्त किया जाय। यही भगवान् का प्रयोजन है (परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् )। अपना कार्य समाप्त करने के बाद भगवान् अपने धाम गोलोक वृन्दावन लौट गये।
इस प्रकार श्रीमद्भागवत के नवम स्कन्ध के अन्तर्गत ‘भगवान् कृष्ण’ नामक चौबीसवें अध्याय के भक्तिवेदान्त तात्पर्य पूर्ण हुए। भुवनेश्वर (उड़ीसा, भारत) में कृष्णबलराम मन्दिर की स्थापना के अवसर पर नवम स्कंध पूर्ण हुआ।
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