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    "...जो साहित्य असीम परमेश्वर के नाम, यश, रूपों तथा लीलाओं की दिव्य महिमा के वर्णन से पूर्ण है, वह कुछ भिन्न ही रचना है जो इस जगत की गुमराह सभ्यता के अपवित्र जीवन में क्रान्ति लाने वाले दिव्य शब्दों से ओतप्रोत है। ऐसा दिव्य साहित्य, चाहे वह ठीक से न भी रचा हुआ हो ऐसे पवित्र मनुष्यों द्वारा सुना, गाया तथा स्वीकार किया जाता है...।" - श्रीमद्भागवत १.५.११
 
 
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
 
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  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
 

 
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