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हरि बोलबो आर हरि बोलबो आर  |
श्रील नरोत्तमदास ठाकुर |
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हरि बोलबो आर मदन-मोहन हेरबो गो।
एइ रूपे व्रजेर पथे चलबो गो॥1॥ |
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विपिने विनोद खेला संगेते राखालेर मेला।
तांदेर चरणेर धुला माखबो गो॥2॥ |
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राधा-कृष्णेर रूप माधुरी हेरबो दु’नयन भरि,
निकुञ्जेर द्वारे द्वारी रहीबो गो
तोमरा सब ब्रजवसि पुरा-ओ मनेर अभिलाष-इ
कबे श्रीकृष्णेर बंन्सी शुनबो गो॥3॥ |
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एइ देह अंतीम काले राखबो श्री-यमुनार जले,
जय राधा गोविन्द बले भासबो गो।
कहे नरोत्तम दास ना पुरिलो अभिलाष,
आर कबे व्रजे वास करेबो गो॥4॥ |
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शब्दार्थ |
(1) कब मैं भगवान् श्री हरि के पवित्र नामों का जप तथा भगवान् मदनमोहन का दर्शन करूँगा? मैं इस प्रकार व्रजपथ पर अनुगमन करना चाहता हूँ। |
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(2) व्रज में प्रवेश करने के पश्चात्, मैं गोपियों के चरणकमलों का नूपुर बन जाऊँगा तथा मधुर-मधुर ध्वनि से खनकूँगा। मैं वृन्दावन में गोपवृन्दों की विनोदमयी क्रीड़ाओं का दर्शन करूँगा तथा उनकी चरण-रेणु अपनी देह पर धारण करूँगा। |
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(3) श्रीश्री राधा-कृष्ण की रूप माधुरी का मैं नयन-भरकर दर्शन करूँगा तथा मैं व्रज के निकुञ्जों के द्वार पर द्वारपाल बनकर खड़ा रहूँगा। हे व्रजवासियों! कृपया मेरी मनोभिलाषाओं को पूर्ण कीजिए तथा मुझे श्रीकृष्ण की वंशी की मधुर ध्वनि सुनने में सक्षम बनाइए। |
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(4) इस देह को त्यागते समय, मैं इसे श्री यमुनाजी के जल में छोड़ दूँगा तथा ‘‘जय राधा गोविन्द’’ बोलते हुए तैरूँगा। श्रील नरोत्तम दास ठाकुर विलाप करते हैं, ‘‘मेरी अभिलाषाओं की पूर्ति नहीं हुई। मैं कब व्रज में वास करूँगा?’’ |
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ |
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