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वैष्णव भजन  »  विषय-विमूढ़ आर
 
 
श्रील भक्तिविनोद ठाकुर       
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विषय-विमूढ़ आर मायावादी जन।
भक्ति-शून्य दूँहे प्राण धरे अकारण॥1॥
 
 
ए दुइ-संग नाथ! ना हय आमार।
प्रार्थना करिये आमि चरणे तोमार॥2॥
 
 
से दु’येर मध्ये विषयी तबु भाल।
मायावादि-संग नाहि मागि कोन काल॥3॥
 
 
विषयि-हृदय यबे साधु-संग पाय।
अनायासे लभे भक्ति भक्तेर कृपाय॥4॥
 
 
मायावाद-दोष या’र हृदये पशिल।
कुतर्के हृदय ता’र वज्र-सम भेल॥5॥
 
 
भक्तिर स्वरूप, आर ‘विषय’, ‘आश्रय’।
मायावादी ‘अनित्य’ बलिया सब कय॥6॥
 
 
धिक्‌ ता’र कृष्ण-सेवा-श्रवण-कीर्तन।
कृष्ण-अंगे वज्र हाने ताँहार स्तवन॥7॥
 
 
मायावाद-सम भक्ति-प्रतिकूल नाइ।
अतएव मायावादि संग नाहि चाइ॥8॥
 
 
भकतिविनोद मायावाद दूर करि।
वैष्णव-संगेते बैसे नामाश्रय धरि’॥9॥
 
 
(1) जो वयक्ति इन्द्रिय-तृप्ति में आसक्त हैं, उनका जीवन तथा मायावादियों का जीवन, दोनों का जीवन ही वयर्थ है क्योंकि वे परम्‌ भगवान्‌ की भक्ति से विहीन हैं।
 
 
(2) मैं विनम्रतापूर्वक आपके चरणकमलों में प्रार्थना करता हूँ कि मैं इन दो श्रेणियों के वयक्तियों का संग कदापि न करूँ।
 
 
(3) इन दोनों में से, भौतिकतावादियों का संग कुछ ठीक है। मैं किसी भी परिस्थिति में मायावादियों का संग कभी भी न करूँ।
 
 
(4) जब भौतिकतावादियों को भक्तों का संग करने का अवसर प्राप्त होता है, तो भक्तों की अनुकम्पावश, वे सरलता से भक्ति में संलग्न हो जाते हैं।
 
 
(5) जिनका हृदय निर्विशेषवाद की अपवित्रता से कलुषित हो चुका है, उन्हें शुष्क (नीरस) तर्क-वितर्को में आनन्द अनुभव होता है। इनका हृदय वज्र के समान कठोर होता है।
 
 
(6) मायावादी घोषणा करते हैं कि भक्ति के लक्षण, आराधना का विषय तथा आराधक सब अस्थायी हैं।
 
 
(7) एक मायावादी की कृष्ण के प्रति सेवा, तथा उसका भगवद्‌ श्रवण एवं कीर्तन, सब वयर्थ हैं। उसकी प्रार्थनाएँ मानों कृष्ण के शरीर को वज्र से प्रहार करने के समान हैं।
 
 
(8) मायावादियों के संग से बढ़कर भक्ति के लिए और कुछ प्रतिकूल नहीं है। इसी कारणवश मुझे उनका संग नहीं चाहिए।
 
 
(9) श्रील भक्तिविनोद ठाकुर मायावादियों का संग त्यागते हैं तथा वैष्णवों के संग में भगवान्‌ के पवित्र नामों का आश्रय ग्रहण करते हैं।
 
 
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
 
 
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  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
   
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