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वैष्णव भजन  »  एओ त’ एक कलिर चेला
 
 
श्रील भक्तिविनोद ठाकुर       
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एओ त’ एक कलिर चेला।
माथा नेड़ा कपनि परा, तिलक नाके, गलाय माला॥1॥
 
 
देखते वैष्णवेर मत, आसल शाक्त काजेर बेला
सहज-भजन करछेन मामु,
संगे ल’ये परेरे बाला॥2॥
 
 
सखी-भावे भजछेन ता’रे, निजे ह’ये नन्दलाला।
कृ्रष्ण-दासेर कथार छले महा-जनके दिच्छेन शला॥3॥
 
 
नव-रसिक आपने मानि’ खाच्छेन आबार मन-कला।
बाउल बले दोहाइ, ओ भाइ, दुर कर ए लीला-खेला॥4॥
 
 
(1) यह तो कलि का एक चेला है। इसका सर मुँड़ा हुआ केश रहित है, यह ब्राह्मणों के योग्य कौपीन धारण करता है, मस्तक पर तिलक तथा गले में माला है।
 
 
(2) यद्यपि यह वैष्णव के समान प्रतीत होता है, परन्तु वास्तव में यह देवी दुर्गा का उपासक है। इससे श्री भगवान्‌ का सहज-भजन वांछनीय है, परन्तु साथ-ही-साथ, यह परस्त्री को अपने संग रखता है।
 
 
(3) वह उस स्त्री को गोपी एवं स्वयं को नन्द महाराज के पुत्र समान मानता है। वह स्वयं को कृष्ण के दास के रूप में मिथ्या प्रदर्शन करता है। परन्तु, अपने वचनों द्वारा वह परम भगवान्‌ की अवहेलना करता है।
 
 
(4) ऐसा वयक्ति स्वयं को चिन्मय रसों का आनन्द लेने वाला नवीन रसिक मानता है। इस प्रकार, यह निरर्थक चिन्तन में मग्न रहता है। श्री चाँद-बाउल कहते हैं, “हे भाईयो, मेरा यह निवेदन है कि तत्क्षण इन तथाकथित लीलाओं पर विराम लगाएँ। ”
 
 
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
 
 
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  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
   
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥