वैष्णव भजन » विभावरी शेष आलोक |
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| | विभावरी शेष आलोक  | श्रील भक्तिविनोद ठाकुर | भाषा: हिन्दी | English | தமிழ் | ಕನ್ನಡ | മലയാളം | తెలుగు | ગુજરાતી | বাংলা | ଓଡ଼ିଆ | ਗੁਰਮੁਖੀ | | | | विभावरी शेष, आलोक-प्रवेश,
निद्रा छाड़ि’ उठ जीव।
बल’ हरि हरि, मुकुन्द मुरारी,
राम कृष्ण हयग्रीव॥1॥ | | | नृसिंह वामन, श्री मधुसूदन,
ब्रजेन्द्रनन्दन श्याम।
पुतना-घातन, कैटभ -शातन,
जय दाशरथि - राम॥2॥ | | | यशोदा दुलाल, गोविन्द गोपाल,
वृंदावन पुरंदर।
गोपीप्रिय-जन, राधिका-रमण,
भुवन-सुन्दरवर॥3॥ | | | रावणान्तकर, माखन-तस्कर,
गोपीजन-वस्त्रहारि।
ब्रजेर राखाल, गोप-वृन्द-पाल,
चित्तहारी वंशीधारि॥4॥ | | | योगीन्द्र-वन्दन, श्रीनन्द-नन्दन,
ब्रजजन-भयहारि।
नवीन नीरद, रूप मनोहर,
मोहनवंशी-बिहारी॥5॥ | | | यशोदा-नन्दन, कंस-निसूदन,
निकुन्जरास-विलासी।
कदम्ब-कानन, रासपरायण,
वृन्दाविपिन-निवासी॥6॥ | | | आनन्द वर्धन, प्रेम-निकेतन,
फुलशरयोजक काम।
गोपांगनागण, चित्त-विनोदन,
समस्त-गुण-गण-धाम॥7॥ | | | यामुना-जीवन, केलि-परायण,
मानस-चन्द्र-चकोर।
नाम-सुधा-रस, गाओ कृष्ण-यश
राख वचन मन मोर॥8॥ | | | शब्दार्थ | (1) रात्रि का अन्त हो चुका है तथा सूर्योदय हो रहा है। सोती हुई जीवात्माओं, जागो! तथा श्रीहरि के नामों का जप करो। वे मुक्तिदाता हैं तथा मुर नामक असुर को मारनेवाले हैं। वे ही भगवान् बलराम, भगवान् कृष्ण तथा हयग्रीव (भगवान् का अ श्व ग्रीवा धारण किया हुआ अवतार) है। | | | (2) भगवान् के नरसिंह अवतार की जय हो। वामनावतार की जय हो। मधु नामक दैत्य को मारने वाले, व्रजराज के पुत्र, श्याम वर्णी, वृन्दावन के परम भगवान्, पूतना तथा कैटभ दैत्य का नाश करने वाले भगवान् की जय हो। दशरथ पुत्र श्री रामचन्द्र की जय हो। | | | (3) माता यशोदा के दुलारे, वृन्दावन की गायों तथा गोपकुमारों के रक्षक एवं पालनकर्ता, गोपियों के परम प्रिय, राधारानी के संग विहार करने वाले, तथा समग्र ब्रह्मांड में सर्वाधिक आकर्षक भगवान् की जय हो। | | | (4) रावण के संहारक, माखन चोर, गोपियों के वस्त्र चुराने वाले, व्रज की गायों के पालनहार, गोपकुमारों का निर्वाह करने वाले, चित्तचोर, वंशी बजाने वाले की जय हो। | | | (5) महान् योगियों द्वारा वंदनीय, महाराज नन्द के पुत्र, ब्रजवासियों के भय को हरने वाले, वर्षाऋतु के नवीन मेघ के समान अंगकांति वाले, मनोहारी रूप के स्वामी, तथा वंशीविहारी की जय हो। | | | (6) वे यशोदापुत्र, कंस के संहारक, वृन्दावन के निकुंजों में दिवय रास नृत्य का आनन्द उठाने वाले हैं। | | | (7) वे सबके आनन्द को बढ़ाते हैं। वे भगवद् - प्रेमोन्माद के भंडार हैं। वे पुष्प रूपी बाण चलाने वाले कामदेव, व्रजगोपिकाओं के हृदयों को आनन्दित करने वाले, तथा समस्त दिवय गुणों के आश्रय हैं। उनकी जय हो। | | | (8) वे यमुना नदी के जीवन एवं प्राण हैं। वे माधुर्य प्रेम में पारंगत हैं तथा चन्द्रमा रूपी मन में वे चकोर पक्षी के समान हैं। कृष्ण के यह पवित्र नाम अमृतमय हैं। अतएव, कृपया कृष्ण का गुणगान करो तथा इस प्रकार, श्रील भक्तिविनोद ठाकुर के वचनों का मान रखो। | | | हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ | | |
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