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वैष्णव भजन  »  निताई गुणमणि आमार
 
 
श्रील लोचनदास ठाकुर       
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निताई गुणमणि आमार निताई गुणमणि।
आनिया प्रेमेर वन्या भासाइलो अवनी॥1॥
 
 
प्रेमेर वन्या लोइया निताई आइला गौडदेशे।
डुबिलो भकत-गण दीन हीन भासे॥2॥
 
 
दीन हीन पतित पामर नाहि बाछे।
ब्रह्मार दुर्लभ प्रेम सबाकारे जाचे॥3॥
 
 
आबद्ध करुणा-सिन्धु निताई काटिया मुहान्।
घरे घरे बुले प्रेम-अमियार बान॥4॥
 
 
लोचन बोले मोर निताई जेबा ना भजिलो।
जानिया शुनिया सेइ आत्म-घाती होइलो॥5॥
 
 
(1) मेरे प्रिय नित्यानन्द, समस्त सद्‌गुणों के रत्न, मेरे भगवान्‌ नित्यानंद, समस्त सद्‌गुणों के मणि, भगवत्प्रेम पूर्ण आनन्दमय भाव की बाढ़ ले आये हैं जिसने पूरे विश्व को उसमें डुबो लिया है।
 
 
(2) इस भावविह्वल कर देने वाली प्रेम की बाढ़ को लाकर, जब वे भगवान्‌ चैतन्य के आदेश पर, जगन्नाथ पुरी से बंगाल वापस लौटे, निताई ने भक्तों की सभा की बाढ़ लगा दी। पतित अभक्त डूबे नहीं, परन्तु फिर भी वे उस प्रेमपूर्ण परम आनन्दित भाव रूपी सागर में तैरते रहे।
 
 
(3) भगवान्‌ नित्यानंद ने इस उच्च कोटि प्रेम को बिना किसी मूल्य के वितरित किया, जो कि ब्रह्मा जी के लिए भी प्राप्त करना कठिन है। यहाँ तक कि पतित और नीच जीवों को भी जो इसे प्राप्त करने के इच्छुक भी नहीं थे।
 
 
(4) श्रीमान्‌ नित्यानंद प्रभु ने बंद दया के सागर को खोलकर कृष्णप्रेम का हर घर-घर में मुक्त रूप से वितरण किया।
 
 
(5) लोचन दास कहते है, “जिसने भी मेरे निताई की आराधना नहीं की है या उनके द्वारा दिए गए सुअवसर का लाभ नहीं उठाया है, वह जानबूझ कर आत्महत्या करता है। ”
 
 
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥