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शुद्ध-भकत-चरण  |
श्रील भक्तिविनोद ठाकुर |
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शुद्ध-भकत-चरण-रेणु,
भजन अनुकूल।
भकत सेवा, परम-सिद्धि,
प्रेम-लतिकार मूल॥1॥ |
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माधव-तिथि, भक्ति जननी,
यतने पालन करि।
कृष्ण वसति, वसति बलि,
परम आदरे बरि॥2॥ |
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गौर आमार, ये सब स्थाने,
करल भ्रमण रंगे।
से-सब स्थान, हेरिब आमि,
प्रणयि-भकत-संगे॥3॥ |
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मृदंग-वाद्य, शुनिते मन,
अवसर सदा याचे।
गौर-विहित, कीर्तन शुनि’,
आनन्दे हृदय नाचे॥4॥ |
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युगल-मूर्ति, देखिया मोर,
परम-आनन्द हय।
प्रसाद-सेवा, करिते हय,
सकल प्रपन्च जय॥5॥ |
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ये दिन गृहे, भजन देखि
गृहते गोलोक भाय,
चरण-सीधु, देखिया गंगा,
सुख ना सीमा पाय॥6॥ |
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तुलसी देखि, जुड़ाय प्राण,
माधवतोषणी जानि’।
गौर-प्रिय, शाक-सेवने,
जीवन सार्थक मानि॥7॥ |
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भकतिविनोद, कृष्ण भजने,
अनुकूल पाय याहा।
प्रति-दिवसे, परम सुखे,
स्वीकार करये ताहा॥8॥ |
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शब्दार्थ |
(1) शुद्ध भक्तों की चरणरज ही भजन के अनुकूल है। भक्तों की सेवा ही परमसिद्धि है तथा प्रेमरूपी लता का मूल (जड़) है। |
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(2) माधव तिथि (एकादशी) भक्ति देने वाली है इसलिए मैं यत्नपूर्वक इसका पालन करता हूँ। मैं श्रीकृष्ण के धाम को ही आदरपूर्वक अपना निवास-स्थान चुनता हूँ। |
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(3) मेरे गौरसुन्दर ने जिन जिन स्थानों में आनन्दपूर्वक भ्रमण किया, मैं भी प्रेमी भक्तों के साथ उन-उन स्थानों का दर्शन करूँगा। |
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(4) मृदङ्ग की मधुर ध्वनि को सुनने के लिए मेरा मन सर्वदा लालायित रहता है तथा श्रीगौरसुन्दर द्वारा प्रवर्तित कीर्तनों को सुनकर आनन्द से भरकर मेरा हृदय नाचने लगता है। |
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(5) युगल मूर्ति का दर्शन कर मुझे परम आनन्द प्राप्त होता है। महाप्रसाद का सेवन करने से मैं माया को भी जीत लेता हूँ। |
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(6) जिस दिन घर में भजन-कीर्तन होता है, उस दिन घर साक्षात् गोलोक हो जाता है। श्रीभगवान् का चरणामृत और श्रीगंगाजी का दर्शन करके तो सुख की सीमा ही नहीं रहती। |
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(7) माधवप्रिया तुलसी जी का दर्शन कर त्रितापों से दग्ध हुआ हृदय सुशीतल हो जाता है। गौरसुन्दर के प्रिय साग का आस्वादन करने में ही मैं जीवन की सार्थकता मानता हूँ। |
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(8) कृष्ण भजन के अनुकूल जीवननिर्वाह के लिए जो कुछ पाता है, यह भक्तिविनोद प्रतिदिन उसे सुखपूर्वक ग्रहण करते हैं। |
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ |
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