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श्री रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  » 
 
 
 
 
अध्याय 1:  नारदजी का वाल्मीकि को संक्षेप से श्रीरामचरित्र सुनाना
 
अध्याय 2:  तमसा तट पर क्रौंचवध की घटना से शोक संतप्त वाल्मीकि को ब्रह्मा द्वारा रामचरित्रमय काव्य लेखन का आदेश देना
 
अध्याय 3:  वाल्मीकि मुनि द्वारा रामायण काव्य में निबद्ध विषयों का संक्षेप से उल्लेख
 
अध्याय 4:  महर्षि वाल्मीकि का चौबीस हजार श्लोकों से युक्त रामायण का निर्माण करना , लव-कुश का अयोध्या में रामायण गान सुनाना
 
अध्याय 5:  राजा दशरथ द्वारा सुरक्षित अयोध्यापुरी का वर्णन
 
अध्याय 6:  राजा दशरथ के शासनकाल में अयोध्या और वहाँ के नागरिकों की उत्तम स्थिति का वर्णन
 
अध्याय 7:  राजमन्त्रियों के गुण और नीति का वर्णन
 
अध्याय 8:  राजा दशरथ का पुत्र के लिये अश्वमेधयज्ञ का प्रस्ताव और मन्त्रियों तथा ब्राह्मणों द्वारा उनका अनुमोदन
 
अध्याय 9:  सुमन्त्र का दशरथ को ऋष्यशृंग मुनि को बुलाने की सलाह और शान्ता से विवाह का प्रसंग सुनाना
 
अध्याय 10:  अंगदेश में ऋष्यश्रृंग के आने तथा शान्ता के साथ विवाह होने के प्रसंग का विस्तार के साथ वर्णन
 
अध्याय 11:  राजा दशरथ का सपरिवार अंगराज के यहाँ जाकर वहाँ से शान्ता और ऋष्यश्रृंग को अपने घर ले आना
 
अध्याय 12:  ऋषियों का दशरथ को और दशरथ का मन्त्रियों को यज्ञ की आवश्यक तैयारी करने के लिये आदेश देना
 
अध्याय 13:  यज्ञ की तैयारी, राजाओं को बुलाने के आदेश एवं उनका सत्कार तथा पत्नियों सहित राजा दशरथ का यज्ञ की दीक्षा लेना
 
अध्याय 14:  महाराज दशरथ के द्वारा अश्वमेध यज्ञ का सांगोपांग अनुष्ठान
 
अध्याय 15:  ऋष्यशृंग द्वारा राजा दशरथ के पुत्रेष्टि यज्ञ का आरम्भ, ब्रह्माजी का रावण के वध का उपाय ढूँढ़ निकालना
 
अध्याय 16:  श्रीहरि से रावणवध के लिये प्रार्थना, पुत्रेष्टि यज्ञ में प्राजापत्य पुरुष का प्रकट हो खीर अर्पण करना और रानियों का गर्भवती होना
 
अध्याय 17:  ब्रह्माजी की प्रेरणा से देवता आदि के द्वारा विभिन्न वानरयूथपतियों की उत्पत्ति
 
अध्याय 18:  श्रीराम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न के जन्म, संस्कार, शीलस्वभाव एवं सद्गुण, राजा के दरबार में विश्वामित्र का आगमन और उनका सत्कार
 
अध्याय 19:  विश्वामित्र के मुख से श्रीराम को साथ ले जाने की माँग सुनकर राजा दशरथ का दुःखित एवं मूर्च्छित होना
 
अध्याय 20:  राजा दशरथ का विश्वामित्र को अपना पुत्र देने से इनकार करना और विश्वामित्र का कुपित होना
 
अध्याय 21:  विश्वामित्र के रोषपूर्ण वचन तथा वसिष्ठ का राजा दशरथ को समझाना
 
अध्याय 22:  दशरथ का स्वस्तिवाचन पूर्वक राम-लक्ष्मण को मुनि के साथ भेजना, विश्वामित्र से बला और अतिबला नामक विद्या की प्राप्ति
 
अध्याय 23:  विश्वामित्र सहित श्रीराम और लक्ष्मण का सरयू-गंगा संगम के समीप पुण्य आश्रम में रात को ठहरना
 
अध्याय 24:  श्रीराम और लक्ष्मण का गंगापार होते समय तुमुलध्वनि के विषय में प्रश्न, मलद, करूष एवं ताटका वन का परिचय
 
अध्याय 25:  श्रीराम के पूछने पर विश्वामित्रजी का ताटका की उत्पत्ति, विवाह एवं शाप आदि का प्रसंग सुना ताटका-वध के लिये प्रेरित करना
 
अध्याय 26:  श्रीराम द्वारा ताटका का वध
 
अध्याय 27:  विश्वामित्र द्वारा श्रीराम को दिव्यास्त्र
 
अध्याय 28:  विश्वामित्र का श्रीराम को अस्त्रों की संहारविधि बताना,अस्त्रों का उपदेश करना, श्रीराम का आश्रम एवं यज्ञस्थानके विषय में प्रश्न
 
अध्याय 29:  विश्वामित्रजी का श्रीराम से सिद्धाश्रम का पूर्ववृत्तान्त बताना और उन दोनों भाइयों के साथ अपने आश्रम पहुँचकर पूजित होना
 
अध्याय 30:  श्रीराम द्वारा विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा तथा राक्षसों का संहार
 
अध्याय 31:  श्रीराम, लक्ष्मण तथा ऋषियों सहित विश्वामित्र का मिथिला को प्रस्थान तथा मार्ग में संध्या के समय शोणभद्र तट पर विश्राम
 
अध्याय 32:  ब्रह्मपुत्र कुश पुत्रों का वर्णन, कुशनाभ की सौ कन्याओंका वायु के कोप से ‘कुब्जा’ होना
 
अध्याय 33:  राजा कुशनाभद्वारा कन्याओं के धैर्य एवं क्षमाशीलता की प्रशंसा, ब्रह्मदत्त की उत्पत्ति,कुशनाभ की कन्याओं का विवाह
 
अध्याय 34:  गाधि की उत्पत्ति, कौशिकी की प्रशंसा
 
अध्याय 35:  विश्वामित्र आदि का गंगाजी के तटपर रात्रिवास करना, गंगाजी की उत्पत्ति की कथा
 
अध्याय 36:  देवताओं का शिव-पार्वती को सुरतक्रीडा से निवृत्त करना तथा उमादेवी का देवताओं और पृथ्वी को शाप देना
 
अध्याय 37:  गंगा से कार्तिकेय की उत्पत्ति का प्रसंग
 
अध्याय 38:  राजा सगर के पुत्रों की उत्पत्ति तथा यज्ञ की तैयारी
 
अध्याय 39:  इन्द्र के द्वारा राजा सगर के यज्ञ सम्बन्धी अश्व का अपहरण, सगरपुत्रों द्वारा सारी पृथ्वी का भेदन
 
अध्याय 40:  सगर के पुत्रों का पृथ्वी को खोदते हुए कपिलजी के पास पहुँचना और उनके रोष से जलकर भस्म होना
 
अध्याय 41:  सगर की आज्ञा से अंशुमान् का रसातल में जाकर घोड़े को ले आना और अपने चाचाओं के निधन का समाचार सुनाना
 
अध्याय 42:  ब्रह्माजी का भगीरथ को अभीष्ट वर देना, गंगा जी को धारण करनेके लिये भगवान् शङ्कर को राजी करना
 
अध्याय 43:  भगीरथ की तपस्या, भगवान् शङ्कर का गंगा को अपने सिर पर धारण करना, भगीरथ के पितरों का उद्धार
 
अध्याय 44:  ब्रह्माजी का भगीरथ को पितरों के तर्पण की आज्ञा देना, गंगावतरण के उपाख्यान की महिमा
 
अध्याय 45:  देवताओं और दैत्यों द्वारा क्षीर-समुद्र मन्थन, भगवान् रुद्र द्वारा हालाहल विष का पान, देवासुर-संग्राम में दैत्यों का संहार
 
अध्याय 46:  दिति का कश्यपजी से इन्द्र हन्ता पुत्र की प्राप्ति के लिये कुशप्लव में तप, इन्द्र का उनके गर्भ के सात टुकड़े कर डालना
 
अध्याय 47:  दिति का अपने पुत्रों को मरुद्गण बनाकर देवलोक में रखने के लिये इन्द्र से अनुरोध, इक्ष्वाकु-पुत्र विशाल द्वारा विशाला नगरी का निर्माण
 
अध्याय 48:  मुनियों सहित श्रीराम का मिथिलापुरी में पहुँचना, विश्वामित्रजी का उनसे अहल्या को शाप प्राप्त होने की कथा सुनाना
 
अध्याय 49:  इन्द्र को भेड़े के अण्डकोष से युक्त करना,भगवान् श्रीराम के द्वारा अहल्या का उद्धार
 
अध्याय 50:  राम आदि का मिथिला-गमन, राजा जनक द्वारा विश्वामित्र का सत्कार तथा उनका श्रीराम और लक्ष्मण के विषय में परिचय पाना
 
अध्याय 51:  शतानन्द को अहल्या के उद्धार का समाचार बताना,शतानन्द द्वारा श्रीराम का अभिनन्दन करते हुए विश्वामित्रजी के पूर्वचरित्र का वर्णन
 
अध्याय 52:  महर्षि वसिष्ठ द्वारा विश्वामित्र का सत्कार और कामधेनु को अभीष्ट वस्तुओं की सृष्टि करने का आदेश
 
अध्याय 53:  विश्वामित्र का वसिष्ठ से उनकी कामधेनु को माँगना और उनका देने से अस्वीकार करना
 
अध्याय 54:  विश्वामित्र का वसिष्ठजी की गौ को बलपूर्वक ले जाना, गौका दुःखी होकर वसिष्ठजी से इसका कारण पूछना, विश्वामित्रजी की सेना का संहार करना
 
अध्याय 55:  अपने सौ पुत्रों और सारी सेना के नष्ट हो जाने पर विश्वामित्र का तपस्या करके दिव्यास्त्र पाना, वसिष्ठजी का ब्रह्मदण्ड लेकर उनके सामने खड़ा होना
 
अध्याय 56:  विश्वामित्र द्वारा वसिष्ठजी पर नाना प्रकार के दिव्यास्त्रों का प्रयोग,वसिष्ठ द्वारा ब्रह्मदण्ड से ही उनका शमन,विश्वामित्र का ब्राह्मणत्व की प्राप्ति के लिये तप करने का निश्चय
 
अध्याय 57:  विश्वामित्र की तपस्या, राजा त्रिशंकु का यज्ञ के लिये वसिष्ठजी से प्रार्थना करना,उनके इन्कार करने पर उन्हीं के पुत्रों की शरण में जाना
 
अध्याय 58:  वसिष्ठ ऋषि के पुत्रों का त्रिशंकु को शाप-प्रदान, उनके शाप से चाण्डाल हुए त्रिशंकु का विश्वामित्रजी की शरण में जाना
 
अध्याय 59:  विश्वामित्र का त्रिशंकु का यज्ञ कराने के लिये ऋषिमुनियों को आमन्त्रित करना और उनकी बात न मानने वाले महोदय तथा ऋषिपुत्रों को शाप देकर नष्ट करना
 
अध्याय 60:  ऋषियोंद्वारा यज्ञ का आरम्भ, त्रिशंकु का सशरीर स्वर्गगमन, इन्द्र द्वारा स्वर्ग से उनके गिराये जाने पर क्षुब्ध हुए विश्वामित्र का नूतन देवसर्ग के लिये उद्योग
 
अध्याय 61:  विश्वामित्र की पुष्कर तीर्थ में तपस्या तथा राजर्षि अम्बरीष का ऋचीक के मध्यम पुत्र शुनःशेप को यज्ञ-पशु बनाने के लिये खरीदकर लाना
 
अध्याय 62:  विश्वामित्र द्वारा शुनःशेप की रक्षा का सफल प्रयत्न और तपस्या
 
अध्याय 63:  विश्वामित्र को ऋषि एवं महर्षिपद की प्राप्ति, मेनका द्वारा उनका तपोभंग तथा ब्रह्मर्षिपद की प्राप्ति के लिये उनकी घोर तपस्या
 
अध्याय 64:  विश्वामित्र का रम्भा को शाप देकर पुनः घोर तपस्या के लिये दीक्षा लेना
 
अध्याय 65:  विश्वामित्र की घोर तपस्या, उन्हें ब्राह्मणत्व की प्राप्ति तथा राजा जनक का उनकी प्रशंसा करके उनसे विदा ले राजभवन को लौटना
 
अध्याय 66:  राजा जनक का विश्वामित्र और राम लक्ष्मण का सत्कार, धनुष का परिचय देना और धनुष चढ़ा देने पर श्रीराम के साथ ब्याह का निश्चय प्रकट करना
 
अध्याय 67:  श्रीराम के द्वारा धनुर्भंग तथा राजा जनक का विश्वामित्र की आज्ञा से राजा दशरथ को बुलाने के लिये मन्त्रियों को भेजना
 
अध्याय 68:  राजा जनक का संदेश पाकर मन्त्रियों सहित महाराज दशरथ का मिथिला जाने के लिये उद्यत होना
 
अध्याय 69:  दल-बलसहित राजा दशरथ की मिथिला-यात्रा और वहाँ राजा जनक के द्वारा उनका स्वागत-सत्कार
 
अध्याय 70:  राजा जनक का अपने भाई कुशध्वज को सांकाश्या नगरी से बुलवाना,वसिष्ठजी का श्रीराम और लक्ष्मण के लिये सीता तथा ऊर्मिला को वरण करना
 
अध्याय 71:  राजा जनक का अपने कल का परिचय देते हुए श्रीराम और लक्ष्मण के लिये क्रमशः सीता और ऊर्मिला को देने की प्रतिज्ञा करना
 
अध्याय 72:  विश्वामित्र द्वारा भरत और शत्रुज के लिये कुशध्वज की कन्याओं का वरण,राजा दशरथ का अपने पुत्रों के मंगल के लिये नान्दीश्राद्ध एवं गोदान करना
 
अध्याय 73:  श्रीराम आदि चारों भाइयों का विवाह
 
अध्याय 74:  राजा जनक का कन्याओं को भारी दहेज देकर राजा दशरथ आदि को विदा करना, मार्ग में शुभाशुभ शकुन और परशुरामजी का आगमन
 
अध्याय 75:  राजा दशरथ की बात अनसुनी करके परशुराम का श्रीराम को वैष्णव-धनुष पर बाण चढ़ाने के लिये ललकारना
 
अध्याय 76:  श्रीराम का वैष्णव-धनुष को चढ़ाकर अमोघ बाण के द्वारा परशुराम के तपःप्राप्तपुण्य लोकों का नाश करना तथा परशुराम का महेन्द्र पर्वत को लौट जाना
 
अध्याय 77:  राजा दशरथ का पुत्रों और वधुओं के साथ अयोध्या में प्रवेश, सीता और श्रीराम का पारस्परिक प्रेम
 
 
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  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
   
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