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श्री रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  » 
 
 
 
 
अध्याय 1:  हनुमान जी की प्रशंसा करके श्रीराम का उन्हें हृदय से लगाना और समुद्र को पार करने के लिये चिन्तित होना
 
अध्याय 2:  सुग्रीव का श्रीराम को उत्साह प्रदान
 
अध्याय 3:  हनुमान जी का लङ्का का वर्णन करके भगवान् श्रीराम से सेना को कूच करने की आज्ञा देने के लिये प्रार्थना करना
 
अध्याय 4:  श्रीराम आदि के साथ वानर-सेना का प्रस्थान और समुद्र-तट पर उसका पड़ाव
 
अध्याय 5:  श्रीराम का सीता के लिये शोक और विलाप
 
अध्याय 6:  रावण का कर्तव्य-निर्णय के लिये अपने मन्त्रियों से समुचित सलाह देने का अनुरोध करना
 
अध्याय 7:  राक्षसों का रावण और इन्द्रजित् के बल-पराक्रम का वर्णन करते हुए उसे राम पर विजय पाने का विश्वास दिलाना
 
अध्याय 8:  प्रहस्त, दुर्मुख, वज्रदंष्ट, निकुम्भ और वज्रहनु का रावण के सामने शत्रु-सेना को मार गिराने का उत्साह दिखाना
 
अध्याय 9:  विभीषण का रावण से श्रीराम की अजेयता बताकर सीताको लौटा देने के लिये अनुरोध करना
 
अध्याय 10:  विभीषण का रावण के महल में जाना, उसे अपशकुनों का भय दिखाकर सीता को लौटा देने के लिये प्रार्थना करना
 
अध्याय 11:  रावण और उसके सभासदों का सभाभवन में एकत्र होना
 
अध्याय 12:  रावण का सीता हरण का प्रसंग बताना , कुम्भकर्ण का पहले तो उसे फटकारना, फिर समस्त शत्रुओं के वध का स्वयं ही भार उठाना
 
अध्याय 13:  महापार्श्व का रावण को उकसाना और रावण का शाप के कारण असमर्थ बताना तथा अपने पराक्रम के गीत गाना
 
अध्याय 14:  विभीषण का राम को अजेय बताकर उनके पास सीता को लौटा देने की सम्मति देना
 
अध्याय 15:  इन्द्रजित् द्वारा विभीषण का उपहास तथा विभीषण का उसे फटकारकर सभा में अपनी उचित सम्मति देना
 
अध्याय 16:  रावण के द्वारा विभीषण का तिरस्कार और विभीषण का भी उसे फटकारकर चल देना
 
अध्याय 17:  विभीषण का श्रीराम की शरण में आना और श्रीराम का अपने मन्त्रियों के साथ उन्हें आश्रय देने के विषय में विचार करना
 
अध्याय 18:  भगवान् श्रीराम का शरणागत की रक्षा का महत्त्व एवं अपना व्रत बताकरविभीषण से मिलना
 
अध्याय 19:  विभीषण का आकाश से उतरकर भगवान् श्रीराम के चरणों की शरण लेना, श्रीराम का रावण-वध की प्रतिज्ञा करना
 
अध्याय 20:  शार्दूल के कहने से रावण का शुक को दूत बनाकर सुग्रीव के पास संदेश भेजना, सुग्रीव का रावण के लिये उत्तर देना
 
अध्याय 21:  श्रीराम का समुद्र के तट पर तीन दिनों तक धरना देने पर भी समुद्र के दर्शन न देने से बाण मारकर विक्षुब्ध कर देना
 
अध्याय 22:  नल के द्वारा सागर पर सौ योजन लंबे पुल का निर्माण तथा उसके द्वारा श्रीराम सहित वानरसेना का उस पार पड़ाव डालना
 
अध्याय 23:  श्रीराम का लक्ष्मण से उत्पातसूचक लक्षणों का वर्णन और लङ्का पर आक्रमण
 
अध्याय 24:  श्रीराम का लक्ष्मण से लङ्का की शोभा का वर्णन कर सेना को व्यूहबद्ध करना, रावण का अपने बल की डींग हाँकना
 
अध्याय 25:  रावण का शुक और सारण को गुप्त रूप से वानरसेना में भेजना, श्रीराम का संदेश लेकर लङ्का में लौट रावण को समझाना
 
अध्याय 26:  सारण का रावण को पृथक-पृथक वानर यूथपतियों का परिचय देना
 
अध्याय 27:  वानरसेना के प्रधान यूथपतियों का परिचय
 
अध्याय 28:  शुक के द्वारा सुग्रीव के मन्त्रियों का, मैन्द और द्विविद का, हनुमान् का, श्रीराम, लक्ष्मण, विभीषण और सग्रीव का परिचय देना
 
अध्याय 29:  रावण का शुक और सारण को फटकारना,उसके भेजे गुप्तचरों का श्रीराम की दया से वानरों के चंगुल से छूटकर लङ्का में आना
 
अध्याय 30:  रावण के भेजे हुए गुप्तचरों एवं शार्दूल का उससे वानर-सेना का समाचार बताना और मुख्य-मुख्य वीरों का परिचय देना
 
अध्याय 31:  मायारचित श्रीराम का कटा मस्तक दिखाकर रावण द्वारा सीता को मोह में डालने का प्रयत्न
 
अध्याय 32:  श्रीराम के मारे जाने का विश्वास करके सीता का विलाप तथा रावण का सभा में जाकर मन्त्रियों के सलाह से युद्धविषयक उद्योग करना
 
अध्याय 33:  सरमा का सीता को सान्त्वना देना, रावण की माया का भेद खोलना, श्रीराम के आगमन और उनके विजयी होने का विश्वास दिलाना
 
अध्याय 34:  सीता के अनुरोध से सरमा का उन्हें मन्त्रियोंसहित रावण का निश्चित विचार बताना
 
अध्याय 35:  माल्यवान् का रावण को श्रीराम से संधि करने के लिये समझाना
 
अध्याय 36:  माल्यवान् पर आक्षेप और नगर की रक्षा का प्रबन्ध करके रावण का अपने अन्तःपुर में जाना
 
अध्याय 37:  विभीषण का श्रीराम से लङ्का की रक्षा के प्रबन्ध का वर्णन तथा श्रीराम द्वारा लङ्का के विभिन्न द्वारों पर आक्रमण करने के लिये अपने सेनापतियों की नियुक्ति
 
अध्याय 38:  श्रीराम का प्रमुख वानरों के साथ सुवेल पर्वत पर चढ़कर वहाँ रात में निवास करना
 
अध्याय 39:  वानरोंसहित श्रीराम का सुवेलशिखर से लङ्कापुरी का निरीक्षण करना
 
अध्याय 40:  सुग्रीव और रावण का मल्लयुद्ध
 
अध्याय 41:  श्रीराम का सुग्रीव को दुःसाहस से रोकना, लङ्का के चारों द्वारों पर वानरसैनिकों की नियक्ति, रामदत अङद का रावण के महल में पराक्रम तथा वानरों के आक्रमण से राक्षसों को भय
 
अध्याय 42:  लङ्का पर वानरों की चढ़ाई तथा राक्षसों के साथ उनका घोर युद्ध
 
अध्याय 43:  द्वन्द्वयुद्ध में वानरों द्वारा राक्षसों की पराजय
 
अध्याय 44:  रात में वानरों और राक्षसों का घोर युद्ध, अङ्गद के द्वारा इन्द्रजित् की पराजय, इन्द्रजित् द्वारा श्रीराम और लक्ष्मण को बाँधना
 
अध्याय 45:  इन्द्रजित् के बाणों से श्रीराम और लक्ष्मण का अचेत होना और वानरों का शोक करना
 
अध्याय 46:  श्रीराम और लक्ष्मण को मूर्च्छित देख वानरों का शोक, इन्द्रजित् का पिता को शत्रुवध का वृत्तान्त बताना
 
अध्याय 47:  वानरों द्वारा श्रीराम और लक्ष्मण की रक्षा, सीता को पुष्पकविमान द्वारा श्रीराम और लक्ष्मण का दर्शन कराना और सीता रुदन
 
अध्याय 48:  सीता का विलाप और त्रिजटा का उन्हें समझा-बुझाकर श्रीराम-लक्ष्मण के जीवित होने का विश्वास दिलाना
 
अध्याय 49:  श्रीराम का सचेत हो लक्ष्मण के लिये विलाप करना और स्वयं प्राणत्याग का विचार करके वानरों को लौट जाने की आज्ञा देना
 
अध्याय 50:  विभीषण को इन्द्रजित् समझकर वानरों का पलायन, गरुड़ का आना और श्रीराम लक्ष्मण को नागपाश से मुक्त करके जाना
 
अध्याय 51:  श्रीराम के बन्धनमुक्त होने का पता पाकर चिन्तित हए रावण का धूम्राक्ष को युद्ध के लिये भेजना
 
अध्याय 52:  धूम्राक्ष का युद्ध और हनुमान जी के द्वारा उसका वध
 
अध्याय 53:  वज्रदंष्ट्र का सेनासहित युद्ध के लिये प्रस्थान, वानरों और राक्षसों का युद्ध, अङ्गद द्वारा राक्षसों का संहार
 
अध्याय 54:  वज्रदंष्ट्र और अङ्गद का युद्ध तथा अङ्गद के हाथ से उस निशाचर का वध
 
अध्याय 55:  रावण की आज्ञा से अकम्पन आदि राक्षसों का युद्ध में आना और वानरों के साथ उनका घोर युद्ध
 
अध्याय 56:  हनुमान जी के द्वारा अकम्पन का वध
 
अध्याय 57:  प्रहस्त का रावण की आज्ञा से विशाल सेनासहित युद्ध के लिये प्रस्थान
 
अध्याय 58:  नील के द्वारा प्रहस्त का वध
 
अध्याय 59:  प्रहस्त की मृत्यु से दुःखी रावण का युद्ध के लिये पधारना, लक्ष्मण का युद्ध में आना, श्रीराम से परास्त होकर रावण का लङ्का जाना
 
अध्याय 60:  अपनी पराजय से दुःखी रावण की आज्ञा से सोये कुम्भकर्ण का जगाया जाना और उसे देखकर वानरों का भयभीत होना
 
अध्याय 61:  विभीषण का श्रीराम को कुम्भकर्ण का परिचय देना, श्रीराम की आज्ञा से वानरों का लङ्का के द्वारों पर डट जाना
 
अध्याय 62:  कुम्भकर्ण का रावण के भवन में प्रवेश तथा रावण का राम से भय बताकर उसे शत्रुसेना के विनाश के लिये प्रेरित करना
 
अध्याय 63:  कुम्भकर्ण का रावण को उसके कुकृत्यों के लिये उपालम्भ देना और उसे धैर्य बँधाते हुए युद्धविषयक उत्साह प्रकट करना
 
अध्याय 64:  महोदर का कुम्भकर्ण के प्रति आक्षेप करके रावण को बिना युद्ध के ही अभीष्ट वस्तु की प्राप्ति का उपाय बताना
 
अध्याय 65:  कुम्भकर्ण की रणयात्रा
 
अध्याय 66:  कुम्भकर्ण के भय से भागे हुए वानरों का अङ्गद द्वारा प्रोत्साहन और आवाहन, कुम्भकर्ण द्वारा वानरों का संहार
 
अध्याय 67:  कम्भकर्ण का भयंकर युद्ध और श्रीराम के हाथ से उसका वध
 
अध्याय 68:  कुम्भकर्ण के वध का समाचार सुनकर रावण का विलाप
 
अध्याय 69:  रावण के पुत्रों और भाइयों का युद्ध के लिये जाना और नरान्तकका अङ्गद के द्वारा वध
 
अध्याय 70:  हनुमान जी के द्वारा देवान्तक और त्रिशिरा का, नील के द्वारा महोदर का तथा ऋषभ के द्वारा महापार्श्व का वध
 
अध्याय 71:  अतिकाय का भयंकर युद्ध और लक्ष्मण के द्वारा उसका वध
 
अध्याय 72:  रावणकी चिन्ता तथा उसका राक्षसोंको पुरीकी रक्षाके लिये सावधान रहनेका आदेश
 
अध्याय 73:  इन्द्रजित्के ब्रह्मास्त्रसे वानरसेनासहित श्रीराम और लक्ष्मणका मूर्च्छित होना
 
अध्याय 74:  जाम्बवान्के आदेशसे हनुमान्जीका हिमालयसे दिव्य ओषधियोंके पर्वतको लाना और उन ओषधियोंकी गन्धसे श्रीराम, लक्ष्मण एवं समस्त वानरोंका पुनः स्वस्थ होना
 
अध्याय 75:  लङ्कापुरीका दहन तथा राक्षसों और वानरोंका भयंकर युद्ध
 
अध्याय 76:  अङ्गदके द्वारा कम्पन और प्रजङ्घका द्विविदके द्वारा शोणिताक्षका, मैन्दके द्वारा यूपाक्षका और सुग्रीवके द्वारा कुम्भका वध
 
अध्याय 77:  हनुमान्के द्वारा निकुम्भका वध
 
अध्याय 78:  रावणकी आज्ञासे मकराक्षका युद्धके लिये पत्र थान
 
अध्याय 79:  श्रीरामचन्द्रजीके द्वारा मकराक्षका वध
 
अध्याय 80:  रावणकी आज्ञासे इन्द्रजित्का घोर युद्ध तथा उसके वधके विषयमें श्रीराम और लक्ष्मणकी बातचीत
 
अध्याय 81:  इन्द्रजित्के द्वारा मायामयी सीताका वध
 
अध्याय 82:  हनुमान्जीके नेतृत्वमें वानरों और निशाचरोंका युद्ध, हनुमान्जीका श्रीरामके पास लौटना और इन्द्रजित्का निकुम्भिला-मन्दिरमें जाकर होम करना
 
अध्याय 83:  सीताके मारे जानेकी बात सुनकर श्रीरामका शोकसे मूर्च्छित होना और लक्ष्मणका उन्हें समझाते हुए पुरुषार्थके लिये उद्यत होना
 
अध्याय 84:  विभीषणका श्रीरामको इन्द्रजित्की मायाका रहस्य बताकर सीताके जीवित होनेका विश्वास दिलाना और लक्ष्मणको सेनासहित निकुम्भिला-मन्दिरमें भेजनेके लिये अनुरोध करना
 
अध्याय 85:  विभीषणके अनुरोधसे श्रीरामचन्द्रजीका लक्ष्मणको इन्द्रजित्के वधके लिये जानेकी आज्ञा देना और सेनासहित लक्ष्मणका निकुम्भिला-मन्दिरके पास पहुँचना
 
अध्याय 86:  वानरों और राक्षसोंका युद्ध, हनुमान्जीके द्वारा राक्षससेनाका संहार और उनका इन्द्रजित्को द्वन्द्वयुद्धके लिये ललकारना तथा लक्ष्मणका उसे देखना
 
अध्याय 87:  इन्द्रजित् और विभीषणकी रोषपूर्ण बातचीत
 
अध्याय 88:  लक्ष्मण और इन्द्रजित्की परस्पर रोषभरी बातचीत और घोर युद्ध
 
अध्याय 89:  विभीषणका राक्षसोंपर प्रहार, उनका वानरयूथ पतियोंको प्रोत्साहन देना, लक्ष्मणद्वारा इन्द्रजित्के सारथिका और वानरोंद्वारा उसके घोड़ोंका वध
 
अध्याय 90:  इन्द्रजित् और लक्ष्मणका भयंकर युद्ध तथा इन्द्रजित्का वध
 
अध्याय 91:  लक्ष्मण और विभीषण आदिका श्रीरामचन्द्रजीके पास आकर इन्द्रजित्के वधका समाचार सुनाना, प्रसन्न हुए श्रीरामके द्वारा लक्ष्मणको हृदयसे लगाकर उनकी प्रशंसा तथा सुषेणद्वारा लक्ष्मण आदिकी चिकित्सा
 
अध्याय 92:  रावणका शोक तथा सुपार्श्वके समझानेसे उसका सीता-वधसे निवृत्त होना
 
अध्याय 93:  श्रीरामद्वारा राक्षससेनाका संहार
 
अध्याय 94:  राक्षसियोंका विलाप
 
अध्याय 95:  रावणका अपने मन्त्रियोंको बुलाकर शत्रुवधवि षयक अपना उत्साह प्रकट करना और सबके साथ रणभूमिमें आकर पराक्रम दिखाना
 
अध्याय 96:  सुग्रीवद्वारा राक्षससेनाका संहार और विरूपाक्षका वध
 
अध्याय 97:  सुग्रीवके साथ महोदरका घोर युद्ध तथा वध
 
अध्याय 98:  अङ्गदके द्वारा महापार्श्वका वध.
 
अध्याय 99:  श्रीराम और रावणका युद्ध
 
अध्याय 100:  राम और रावणका युद्ध, रावणकी शक्तिसे लक्ष्मणका मूर्च्छित होना तथा रावणका युद्धसे भागना
 
अध्याय 101:  श्रीरामका विलाप तथा हनुमान्जीकी लायी हुर्इ ओषधिके सुषेणद्वारा किये गये प्रयोगसे लक्ष्मणका सचेत हो उठना
 
अध्याय 102:  इन्द्रके भेजे हुए रथपर बैठकर श्रीरामका रावणके साथ युद्ध करना
 
अध्याय 103:  श्रीरामका रावणको फटकारना और उनके द्वार घायल किये गये रावणको सारथिका रणभूमिसे बाहर ले जाना
 
अध्याय 104:  रावणका सारथिको फटकारना और सारथिका अपने उत्तरसे रावणको संतुष्ट करके उसके रथको रणभूमिमें पहुँचाना
 
अध्याय 105:  अगस्त्य मुनिका श्रीरामको विजयके लिये “आदित्यहृदय” के पाठकी सम्मति देना
 
अध्याय 106:  रावणके रथको देख श्रीरामका मातलिको सावधान करना, रावणकी पराजयके सूचक उत्पातों तथा रामकी विजय सूचित करनेवाले शुभ शकुनोंका वर्णन
 
अध्याय 107:  श्रीराम और रावणका घोर युद्ध
 
अध्याय 108:  श्रीरामके द्वारा रावणका वध
 
अध्याय 109:  विभीषणका विलाप और श्रीरामका उन्हें समझाकर रावणके अन्त्येष्टि संस्कारके लिये आदेश देना
 
अध्याय 110:  रावणकी स्त्रियोंका विलाप
 
अध्याय 111:  मन्दोदरीका विलाप तथा रावणके शवका दाह-संस्कार
 
अध्याय 112:  विभीषणका राज्याभिषेक और श्रीरघुनाथजीका हनुमान्जीके द्वारा सीताके पास संदेश भेजना
 
अध्याय 113:  हनुमान्जीका सीताजीसे बातचीत करके लौटना और उनका संदेश श्रीरामको सुनाना
 
अध्याय 114:  श्रीरामकी आज्ञासे विभीषणका सीताको उनके समीप लाना और सीताका प्रियतमके मुखचन्द्रका दर्शन करना
 
अध्याय 115:  सीताके चरित्रपर संदेह करके श्रीरामका उन्हें ग्रहण करनेसे इनकार करना और अन्यत्र जानेके लिये कहना
 
अध्याय 116:  सीताका श्रीरामको उपालम्भपूर्ण उत्तर देकर अपने सतीत्वकी परीक्षा देनेके लिये अग्निमें प्रवेश करना
 
अध्याय 117:  भगवान् श्रीरामके पास देवताओंका आगमन तथा ब्रह्माद्वारा उनकी भगवत्ताका प्रतिपादन एवं स्तवन
 
अध्याय 118:  मूर्तिमान् अग्निदेवका सीताको लेकर चितासे प्रकट होना और श्रीरामको समर्पित करके उनकी पवित्रताको प्रमाणित करना तथा श्रीरामका सीताको सहर्ष स्वीकार करना
 
अध्याय 119:  महादेवजीकी आज्ञासे श्रीराम और लक्ष्मणका विमानद्वारा आये हुए राजा दशरथको प्रणाम करना और दशरथका दोनों पुत्रों तथा सीताको आवश्यक संदेश दे इन्द्रलोकको जाना
 
अध्याय 120:  श्रीरामके अनुरोधसे इन्द्रका मरे हुए वानरोंको जीवित करना, देवताओंका प्रस्थान और वानरसेनाका विश्राम
 
अध्याय 121:  श्रीरामका अयोध्या जानेके लिये उद्यत होना और उनकी आज्ञासे विभीषणका पुष्पकविमानको मँगाना
 
अध्याय 122:  श्रीरामकी आज्ञासे विभीषणद्वारा वानरोंका विशेष सत्कार तथा सुग्रीव और विभीषणसहित वानरोंको साथ लेकर श्रीरामका पुष्पकविमानद्वारा अयोध्याको प्रस्थान करना
 
अध्याय 123:  अयोध्याकी यात्रा करते समय श्रीरामका सीताजीको मार्गके स्थान दिखाना
 
अध्याय 124:  श्रीरामका भरद्वाज आश्रमपर उतरकर महर्षिसे मिलना और उनसे वर पाना
 
अध्याय 125:  हनुमान्जीका निषादराज गुह तथा भरतजीको श्रीरामके आगमनकी सूचना देना और प्रसन्न हुए भरतका उन्हें उपहार देनेकी घोषणा करना
 
अध्याय 126:  हनुमान्जीका भरतको श्रीराम, लक्ष्मण और सीताके वनवाससम्बन्धी सारे वृत्तान्तोंको सुनाना
 
अध्याय 127:  अयोध्यामें श्रीरामके स्वागतकी तैयारी, भरतके साथ सबका श्रीरामकी अगवानीके लिये नन्दिग्राममें पहुँचना, श्रीरामका आगमन, भरत आदिके साथ उनका मिलाप तथा पुष्पकविमानको कुबेरके पास भेजना
 
अध्याय 128:  भरतका श्रीरामको राज्य लौटाना, श्रीरामकी नगरयात्रा, राज्याभिषेक, वानरोंकी विदार्इ तथा ग्रन्थका माहात्म्य
 
 
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