काण्ड 7: उत्तर काण्ड
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अध्याय 1: श्रीरामके दरबारमें महर्षियोंका आगमन, उनके साथ उनकी बातचीत तथा श्रीरामके प्रश्न |
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अध्याय 2: महर्षि अगस्त्यके द्वारा पुलस्त्यके गुण और तपस्याका वर्णन तथा उनसे विश्रवा मुनिकी उत्पत्तिका कथन |
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अध्याय 3: राक्षसवंशका वर्णन - हेति, विद्युत्केश और सुकेशकी उत्पत्ति |
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अध्याय 4: रावण आदिका जन्म और उनका तपके लिये गोकर्ण - आश्रममें जाना |
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अध्याय 5: सुकेशके पुत्र माल्यवान्, सुमाली और मालीकी संतानोंका वर्णन |
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अध्याय 6: देवताओंका भगवान् शङ्करकी सलाहसे राक्षसोंके वधके लिये भगवान् विष्णुकी शरणमें जाना और उनसे आश्वासन पाकर लौटना, राक्षसोंका देवताओंपर आक्रमण और भगवान् विष्णुका उनकी सहायताके लिये आना |
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अध्याय 7: भगवान् विष्णुद्वारा राक्षसोंका संहार और पलायन |
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अध्याय 8: माल्यवान्का युद्ध और पराजय तथा सुमाली आदि सब राक्षसोंका रसातलमें प्रवेश |
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अध्याय 9: रावण आदिका जन्म और उनका तपके लिये गोकर्ण-आश्रममें जाना |
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अध्याय 10: रावण आदिकी तपस्या और वर-प्राप्ति |
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अध्याय 11: रावणका संदेश सुनकर पिताकी आज्ञासे कुबेरका लङ्काको छोड़कर कैलासपर जाना, लङ्कामें रावणका राज्याभिषेक तथा राक्षसोंका निवास |
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अध्याय 12: शूर्पणखा तथा रावण आदि तीनों भाइयोंका विवाह और मेघनादका जन्म |
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अध्याय 13: रावणद्वारा बनवाये गये शयनागारमें कुम्भकर्णका सोना, रावणका अत्याचार, कुबेरका दूत भेजकर उसे समझाना तथा कुपित हुए रावणका उस दूतको मार डालना |
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अध्याय 14: मन्त्रियोंसहित रावणका यक्षोंपर आक्रमण और उनकी पराजय |
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अध्याय 15: माणिभद्र तथा कुबेरकी पराजय और रावणद्वारा पुष्पक विमानका अपहरण |
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अध्याय 16: नन्दीश्वरका रावणको शाप, भगवान् शङ्करद्वारा रावणका मान भङ्ग तथा उनसे चन्द्रहास नामक खड्गकी प्राप्ति |
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अध्याय 17: रावणसे तिरस्कृत ब्रह्मर्षि कन्या वेदवतीका उसे शाप देकर अग्निमें प्रवेश करना और दूसरे जन्ममें सीताके रूपमें प्रादुर्भूत होना |
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अध्याय 18: रावणद्वारा मरुत्तकी पराजय तथा इन्द्र आदि देवताओंका मयूर आदि पक्षियोंको वरदान देना |
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अध्याय 19: रावणके द्वारा अनरण्यका वध तथा उनके द्वारा उसे शापकी प्राप्ति |
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अध्याय 20: नारदजीका रावणको समझाना, उनके कहनेसे रावणका युद्धके लिये यमलोकको जाना तथा नारदजीका इस युद्धके विषयमें विचार करना |
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अध्याय 21: रावणका यमलोकपर आक्रमण और उसके द्वारा यमराजके सैनिकोंका संहार |
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अध्याय 22: यमराज और रावणका युद्ध, यमका रावणके वधके लिये उठाये हुए कालदण्डको ब्रह्माजीके कहनेसे लौटा लेना, विजयी रावणका यमलोकसे प्रस्थान |
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अध्याय 23: रावणके द्वारा निवातकवचोंसे मैत्री, कालकेयोंका वध तथा वरुणपुत्रोंकी पराजय |
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अध्याय 24: रावणद्वारा अपहृत हुई देवता आदिकी कन्याओं और स्त्रियोंका विलाप एवं शाप, रावणका रोती हुई शूर्पणखाको आश्वासन देना और उसे खरके साथ दण्डकारण्यमें भेजना |
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अध्याय 25: यज्ञोंद्वारा मेघनादकी सफलता, विभीषणका रावणको पर-स्त्री-हरणके दोष बताना, कुम्भीनसीको आश्वासन दे मधुको साथ ले रावणका देवलोकपर आक्रमण करना |
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अध्याय 26: रावणका रम्भापर बलात्कार करना और नलकूबरका रावणको भयंकर शाप देना |
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अध्याय 27: सेनासहित रावणका इन्द्रलोकपर आक्रमण, इन्द्रकी भगवान् विष्णुसे सहायताके लिये प्रार्थना, भविष्यमें रावण वधकी प्रतिज्ञा करके विष्णुका इन्द्रको लौटाना, देवताओं और राक्षसोंका युद्ध तथा वसुके द्वारा सुमालीका वध |
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अध्याय 28: मेघनाद और जयन्तका युद्ध, पुलोमाका जयन्तको अन्यत्र ले जाना, देवराज इन्द्रका युद्धभूमिमें पदार्पण, रुद्रों तथा मरुद्गणोंद्वारा राक्षससेनाका संहार और इन्द्र तथा रावणका युद्ध |
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अध्याय 29: रावणका देवसेनाके बीचसे होकर निकलना, देवताओंका उसे कैद करनेके लिये प्रयत्न, मेघनादका मायाद्वारा इन्द्रको बन्दी बनाना तथा विजयी होकर सेनासहित लङ्काको लौटना |
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अध्याय 30: ब्रह्माजीका इन्द्रजित्को वरदान देकर इन्द्रको उसकी कैदसे छुड़ाना और उनके पूर्वकृत पापकर्मको याद दिलाकर उनसे वैष्णव- यज्ञका अनुष्ठान करनेके लिये कहना, उस यज्ञको पूर्ण करके इन्द्रका स्वर्गलोकमें जाना |
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अध्याय 31: रावणका माहिष्मतीपुरीमें जाना और वहाँके राजा अर्जुनको न पाकर मन्त्रियोंसहित उसका विन्ध्यगिरिके समीप नर्मदामें नहाकर भगवान् शिवकी आराधना करना |
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अध्याय 32: अर्जुनकी भुजाओंसे नर्मदाके प्रवाहका अवरुद्ध होना, रावणके पुष्पोपहारका बह जाना, फिर रावण आदि निशाचरोंका अर्जुनके साथ युद्ध तथा अर्जुनका रावणको कैद करके अपने नगरमें ले जाना |
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अध्याय 33: पुलस्त्यजीका रावणको अर्जुनकी कैदसे छुटकारा दिलाना |
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अध्याय 34: वालीके द्वारा रावणका पराभव तथा रावणका उन्हें अपना मित्र बनाना |
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अध्याय 35: हनुमान्जीकी उत्पत्ति, शैशवावस्थामें इनका सूर्य, राहु और ऐरावतपर आक्रमण, इन्द्रके वज्रसे इनकी मूर्च्छा, वायुके कोपसे संसारके प्राणियोंको कष्ट और उन्हें प्रसन्न करनेके लिये देवताओंसहित ब्रह्माजीका उनके पास जाना |
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अध्याय 36: ब्रह्मा आदि देवताओंका हनुमान्जीको जीवित करके नाना प्रकारके वरदान देना और वायुका उन्हें लेकर अञ्जनाके घर जाना, ऋषियोंके शापसे हनुमान्जीको अपने बलकी विस्मृति, श्रीरामका अगस्त्य आदि ऋषियोंसे अपने यज्ञमें पधारनेके लिये प्रस्ताव करके उन्हें विदा देना |
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अध्याय 37: श्रीरामका सभासदोंके साथ राजसभामें बैठना |
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अध्याय 38: श्रीरामके द्वारा राजा जनक, युधाजित्, प्रतर्दन तथा अन्य नरेशोंकी विदार्इ |
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अध्याय 39: राजाओंका श्रीरामके लिये भेंट देना और श्रीरामका वह सब लेकर अपने मित्रों, वानरों, रीछों और राक्षसोंको बाँट देना तथा वानर आदिका वहाँ सुखपूर्वक रहना |
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अध्याय 40: वानरों, रीछों और राक्षसोंकी बिदार्इ |
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अध्याय 41: कुबेरके भेजे हुए पुष्पकविमानका आना और श्रीरामसे पूजित एवं अनुगृहीत होकर अदृश्य हो जाना, भरतके द्वारा श्रीरामराज्यके विलक्षण प्रभावका वर्णन |
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अध्याय 42: अशोकवनिकामें श्रीराम और सीताका विहार, गर्भिणी सीताका तपोवन देखनेकी इच्छा प्रकट करना और श्रीरामका इसके लिये स्वीकृति देना |
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अध्याय 43: भद्रका पुरवासियोंके मुखसे सीताके विषयमें सुनी हुई अशुभ चर्चासे श्रीरामको अवगत कराना |
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अध्याय 44: श्रीरामके बुलानेसे सब भाइयोंका उनके पास आना |
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अध्याय 45: श्रीरामका भाइयोंके समक्ष सर्वत्र फैले हुए लोकापवादकी चर्चा करके सीताको वनमें छोड़ आनेके लिये लक्ष्मणको आदेश देना |
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अध्याय 46: लक्ष्मणका सीताको रथपर बिठाकर उन्हें वनमें छोड़नेके लिये ले जाना और गङ्गाजीके तटपर पहुँचना |
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अध्याय 47: लक्ष्मणका सीताजीको नावसे गङ्गाजीके उस पार पहुँचाकर बड़े दु:खसे उन्हें उनके त्यागे जानेकी बात बताना |
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अध्याय 48: सीताका दुःखपूर्ण वचन, श्रीरामके लिये उनका संदेश, लक्ष्मणका जाना और सीताका रोना |
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अध्याय 49: मुनिकुमारोंसे समाचार पाकर वाल्मीकिका सीताके पास आ उन्हें सान्त्वना देना और आश्रममें लिवा ले जाना |
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अध्याय 50: लक्ष्मण और सुमन्त्रकी बातचीत |
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अध्याय 51: मार्ग में सुमन्त्रका दुर्वासाके मुखसे सुनी हुर्इ भृगुऋषिके शापकी कथा कहकर तथा भविष्यमें होनेवाली कुछ बातें बताकर दुःखी लक्ष्मणको शान्त करना |
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अध्याय 52: अयोध्याके राजभवनमें पहुँचकर लक्ष्मणका दुःखी श्रीरामसे मिलना और उन्हें सान्त्वना देना |
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अध्याय 53: श्रीरामका कार्यार्थी पुरुषोंकी उपेक्षासे राजा नृगको मिलनेवाली शापकी कथा सुनाकर लक्ष्मणको देखभालके लिये आदेश देना |
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अध्याय 54: राजा नृगका एक सुन्दर गड्ढा बनवाकर अपने पुत्रको राज्य दे स्वयं उसमें प्रवेश करके शाप भोगना |
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अध्याय 55: राजा निमि और वसिष्ठका एक-दूसरेके शापसे देहत्याग |
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अध्याय 56: ब्रह्माजीके कहने से वसिष्ठका वरुणके वीर्यमें आवेश, वरुणका उर्वशीके समीप एक कुम्भमें अपने वीर्यका आधान तथा मित्रके शापसे उर्वशीका भूतलमें राजा पुरुरवाके पास रहकर पुत्र उत्पन्न करना |
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अध्याय 57: वसिष्ठका नूतन शरीर धारण और निमिका प्राणियोंके नयनोंमें निवास |
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अध्याय 58: ययातिको शुक्राचार्यका शाप |
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अध्याय 59: ययातिका अपने पुत्र पूरुको अपना बुढ़ापा देकर बदलेमें उसका यौवन लेना और भोगोंसे तृप्त होकर पुन: दीर्घकालके बाद उसे उसका यौवन लौटा देना, पूरुका अपने पिताकी गद्दीपर अभिषेक तथा यदुको शाप |
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अध्याय 60: श्रीरामके दरबारमें च्यवन आदि ऋषियोंका शुभागमन, श्रीरामके द्वारा उनका सत्कार करके उनके अभीष्ट कार्यको पूर्ण करनेकी प्रतिज्ञा तथा ऋषियोंद्वारा उनकी प्रशंसा |
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अध्याय 61: ऋषियोंका मधुको प्राप्त हुए वर तथा लवणासुरके बल और अत्याचारका वर्णन करके उससे प्राप्त होनेवाले भयको दूर करनेके लिये श्रीरघुनाथजीसे प्रार्थना करना |
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अध्याय 62: श्रीरामका ऋषियोंसे लवणासुरके आहार-विहारके विषयमें पूछना और शत्रुघ्नकी रुचि जानकर उन्हें लवण वधके कार्य में नियुक्त करना |
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अध्याय 63: श्रीरामद्वारा शत्रुघ्नका राज्याभिषेक तथा उन्हें लवणासुरके शूलसे बचने के उपायका प्रतिपादन |
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अध्याय 64: श्रीरामकी आज्ञाके अनुसार शत्रुघ्नका सेनाको आगे भेजकर एक मासके पश्चात् स्वयं भी प्रस्थान करना |
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अध्याय 65: महर्षि वाल्मीकिका शत्रुघ्नको सुदासपुत्र कल्माषपादकी कथा सुनाना |
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अध्याय 66: सीताके दो पुत्रोंका जन्म, वाल्मीकिद्वारा उनकी रक्षाकी व्यवस्था और इस समाचारसे प्रसन्न हुए शत्रुघ्नका वहाँसे प्रस्थान करके यमुनातटपर पहुँचना |
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अध्याय 67: च्यवन मुनिका शत्रुघ्नको लवणासुरके शूलकी शक्तिका परिचय देते हुए राजा मान्धाताके वधका प्रसंग सुनाना |
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अध्याय 68: लवणासुरका आहारके लिये निकलना, शत्रुघ्नका मधुपुरीके द्वारपर डट जाना और लौटे हुए लवणासुरके साथ उनकी रोषभरी बातचीत |
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अध्याय 69: शत्रुघ्न और लवणासुरका युद्ध तथा लवणका वध |
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अध्याय 70: देवताओंसे वरदान पा शत्रुघ्नका मधुरापुरीको बसाकर बारहवें वर्षमें वहाँसे श्रीरामके पास जानेका विचार करना |
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अध्याय 71: शत्रुघ्नका थोड़े-से सैनिकोंके साथ अयोध्याको प्रस्थान, मार्गमें वाल्मीकिके आश्रम में रामचरितका गान सुनकर उन सबका आश्चर्यचकित होना |
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अध्याय 72: वाल्मीकिजी से विदा ले शत्रुघ्नजीका अयोध्यामें जाकर श्रीराम आदिसे मिलना और सात दिनोंतक वहाँ रहकर पुनः मधुपुरीको प्रस्थान करना |
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अध्याय 73: एक ब्राह्मणका अपने मरे हुए बालकको राजद्वारपर लाना तथा राजाको ही दोषी बताकर विलाप करना |
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अध्याय 74: नारदजीका श्रीरामसे एक तपस्वी शूद्रके अधर्माचरणको ब्राह्मण-बालककी मृत्युमें कारण बताना |
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अध्याय 75: श्रीरामका पुष्पकविमानद्वारा अपने राज्यकी सभी दिशाओंमें घूमकर दुष्कर्मका पता लगाना; किंतु सर्वत्र सत्कर्म ही देखकर दक्षिण दिशामें एक शूद्र तपस्वीके पास पहुँचना |
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अध्याय 76: श्रीरामके द्वारा शम्बूकका वध, देवताओंद्वारा उनकी प्रशंसा, अगस्त्याश्रमपर महर्षि अगस्त्यके द्वारा उनका सत्कार और उनके लिये आभूषण-दान |
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अध्याय 77: महर्षि अगस्त्यका एक स्वर्गीय पुरुषके शवभक्षणका प्रसंग सुनाना |
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अध्याय 78: राजा श्वेतका अगस्त्यजीको अपने लिये घृणित आहारकी प्राप्तिका कारण बताते हुए ब्रह्माजीके साथ हुए अपनी वार्ताको उपस्थित करना और उन्हें दिव्य आभूषणका दान दे भूख-प्यासके कष्टसे मुक्त होना |
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अध्याय 79: इक्ष्वाकुपुत्र राजा दण्डका राज्य |
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अध्याय 80: राजा दण्डका भार्गव-कन्याके साथ बलात्कार |
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अध्याय 81: शुक्रके शापसे सपरिवार राजा दण्ड और उनके राज्यका नाश |
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अध्याय 82: श्रीरामका अगस्त्य-आश्रमसे अयोध्यापुरीको लौटना |
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अध्याय 83: भरतके कहनेसे श्रीरामका राजसूय यज्ञ करनेके विचारसे निवृत्त होना |
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अध्याय 84: लक्ष्मणका अश्वमेध यज्ञका प्रस्ताव करते हुए इन्द्र और वृत्रासुरकी कथा सुनाना, वृत्रासुरकी तपस्या और इन्द्रका भगवान् विष्णुसे उसके वधके लिये अनुरोध |
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अध्याय 85: भगवान् विष्णुके तेजका इन्द्र और वज्र आदिमें प्रवेश, इन्द्रके वज्रसे वृत्रासुरका वध तथा ब्रह्महत्याग्रस्त इन्द्रका अन्धकारमय प्रदेशमें जाना |
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अध्याय 86: इन्द्रके बिना जगत्में अशान्ति तथा अश्वमेधके अनुष्ठानसे इन्द्रका ब्रह्महत्यासे मुक्त होना |
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अध्याय 87: श्रीरामका लक्ष्मणको राजा इलकी कथा सुनाना – इलको एक-एक मासतक स्त्रीत्व और पुरुषत्वकी प्राप्ति |
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अध्याय 88: इला और बुधका एक-दूसरेको देखना तथा बुधका उन सब स्त्रियोंको किंपुरुषी नाम देकर पर्वतपर रहनेके लिये आदेश देना |
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अध्याय 89: बुध और इलाका समागम तथा पुरुरवाकी उत्पत्ति |
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अध्याय 90: अश्वमेधके अनुष्ठानसे इलाको पुरुषत्वकी प्राप्ति |
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अध्याय 91: श्रीरामके आदेश से अश्वमेध यज्ञकी तैयारी |
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अध्याय 92: श्रीरामके अश्वमेध यज्ञमें दान- मानकी विशेषता |
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अध्याय 93: श्रीरामके यज्ञमें महर्षि वाल्मीकिका आगमन और उनका रामायणगानके लिये कुश और लवको आदेश |
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अध्याय 94: लव-कुशद्वारा रामायण-काव्यका गान तथा श्रीरामका उसे भरी सभामें सुनना |
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अध्याय 95: श्रीरामका सीतासे उनकी शुद्धता प्रमाणित करनेके लिये शपथ करानेका विचार |
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अध्याय 96: महर्षि वाल्मीकिद्वारा सीताकी शुद्धताका समर्थन |
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अध्याय 97: सीताका शपथ ग्रहण और रसातलमें प्रवेश |
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अध्याय 98: सीताके लिये श्रीरामका खेद, ब्रह्माजीका उन्हें समझाना और उत्तरकाण्डका शेष अंश सुननेके लिये प्रेरित करना |
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अध्याय 99: सीताके रसातल - प्रवेशके पश्चात् श्रीरामकी जीवनचर्या, रामराज्यकी स्थिति तथा माताओंके परलोक-गमन आदिका वर्णन |
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अध्याय 100: केकयदेशसे ब्रह्मर्षि गार्ग्यका भेंट लेकर आना और उनके संदेशके अनुसार श्रीरामकी आज्ञासे कुमारोंसहित भरतका गन्धर्वदेशपर आक्रमण करनेके लिये प्रस्थान |
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अध्याय 101: भरतका गन्धर्वोंपर आक्रमण और उनका संहार करके वहाँ दो सुन्दर नगर बसाकर अपने दोनों पुत्रोंको सौंपना और फिर अयोध्याको लौट आना |
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अध्याय 102: श्रीरामकी आज्ञासे भरत और लक्ष्मणद्वारा कुमार अङ्गद और चन्द्रकेतुकी कारुपथ देशके विभिन्न राज्योंपर नियुक्ति |
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अध्याय 103: श्रीरामके यहाँ कालका आगमन और एक कठोर शर्तके साथ उनका वार्ताके लिये उद्यत होना |
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अध्याय 104: कालका श्रीरामचन्द्रजीको ब्रह्माजीका संदेश सुनाना और श्रीरामका उसे स्वीकार करना |
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अध्याय 105: दुर्वासाके शापके भयसे लक्ष्मणका नियम भङ्ग करके श्रीरामके पास इनके आगमनका समाचार देनेके लिये जाना, श्रीरामका दुर्वासा मुनिको भोजन कराना और उनके चले जानेपर लक्ष्मणके लिये चिन्तित होना |
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अध्याय 106: श्रीरामके त्याग देनेपर लक्ष्मणका सशरीर स्वर्गगमन |
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अध्याय 107: वसिष्ठजीके कहनेसे श्रीरामका पुरवासियोंको अपने साथ ले जानेका विचार तथा कुश और लवका राज्याभिषेक करना |
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अध्याय 108: श्रीरामचन्द्रजीका भाइयों, सुग्रीव आदि वानरों तथा रीछोंके साथ परमधाम जानेका निश्चय और विभीषण, हनुमान्, जाम्बवान्, मैन्द एवं द्विविदको इस भूतलपर ही रहनेका आदेश देना |
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अध्याय 109: परमधाम जानेके लिये निकले हुए श्रीरामके साथ समस्त अयोध्यावासियोंका प्रस्थान |
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अध्याय 110: भाइयोंसहित श्रीरामका विष्णुस्वरूपमें प्रवेश तथा साथ आये हुए सब लोगोंको संतानक- लोककी प्राप्ति |
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अध्याय 111: रामायण- काव्यका उपसंहार और इसकी महिमा |
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अध्याय 5901: श्रीरामके द्वारपर कार्यार्थी कुत्तेका आगमन और श्रीरामका उसे दरबारमें लानेका आदेश |
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अध्याय 5902: कुत्तेके प्रति श्रीरामका न्याय, उसकी इच्छाके अनुसार उसे मारनेवाले ब्राह्मणको मठाधीश बना देना और कुत्तेका मठाधीश होनेका दोष बताना |
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